सेवा कभी निष्फल नहीं होती। उसका फल कभी न कभी अवश्य मिलता है, किसी को शीघ्र किसी को विलम्ब से, जो उनके सेवा कार्य पर निर्भर करता है। कर्म करके ही भाग्य को मजबूत बनाया जाता है। इसलिए सेवा करने से कभी मनुष्य को पीछे नहीं हटना चाहिए।
सेवा में सदा तत्पर रहें। आप क्या कर रहे हैं, नहीं कर रहे हैं, सब कुछ तो परमात्मा देख रहा है। परमात्मा की दृष्टि से कोई नहीं बच सकता। वे अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा न्याय करने वाले और फलदाता सर्वोच्च न्यायाधीश की भूमिका निभाते हुए दण्ड और कृपा का उपहार, पारितोषिक के रचियता और दाता हैं।
सेवा करने से कभी किसी को संकोच नहीं करना चाहिए। भगवान की सेवा में श्रद्धा भाव से की गई मजदूरी कभी कम नहीं मिलती, वह वृक्षों के फल की भांति असंख्य रूप में धन, यश, कीर्ति, आयु, सम्मान के रूप में प्राप्त होकर ही रहती है। इसलिए अपनी भावना को सुन्दर बनाये। प्रत्येक जीव को परमात्मा का अंश मानकर उनकी सेवा को परमात्मा की सेवा मानकर खुशियां और आशीर्वाद प्राप्त करें।
भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर द्वारा कराये गये राजसूय यक्ष में अतिथियों की झूठी पत्तले उठाकर सेवा का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया था। स्मरण रहे सेवा का कोई कार्य छोटा नहीं होता।