Friday, November 22, 2024

महिला और शिक्षा राष्ट्र को ‘विकसित भारत’ की ओर ले जाने वाले रथ के दो पहिए : उपराष्ट्रपति

जयपुर। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि महिला और शिक्षा राष्ट्र को ‘विकसित भारत’ की ओर ले जाने वाले रथ के दो पहिए हैं। उपराष्ट्रपति ने महिलाओं और शिक्षा को रथ के दो पहिए बताया, जो अर्थव्यवस्था को चलाएंगे और जिनके बिना विकसित भारत नहीं हो सकता। उन्होंने वैश्विक स्तर पर देश की पकड़ बढ़ाने के लिए भारतीय समाज की कार्यप्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन की अपील की और कहा कि भारत को विकसित राष्ट्र का दर्जा दिलाने के लिए हमें अपनी प्रति व्यक्ति आय आठ गुना बढ़ानी होगी।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ आईआईएस (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी), जयपुर में शनिवार को ‘विकसित भारत 2047

में महिलाओं और शिक्षा की भूमिका’ विषय पर परिचर्चा कार्यक्रम काे संबाेधित कर रहे थे। उन्हाेंने इस बात पर जोर दिया कि विकसित भारत के लिए सही परिस्थिति तंत्र बनाने की आवश्यकता है और आत्मनिर्भर भारत को आकार देने में अच्छी शिक्षा और विशेष रूप से महिला शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। धनखड़ ने शिक्षा को सामाजिक व्यवस्था को संतुलित करने वाला और बदलाव का माध्यम भी बताया। इस दिशा में एक सही कदम नई शिक्षा नीति 2020 की शुरुआत है, जो छात्रों को डिग्री-उन्मुख शिक्षा से दूर करते हुए गुणवत्तापूर्ण और उद्देश्यपूर्ण शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति देती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समावेशी शिक्षा के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना सामाजिक और आर्थिक प्रगति को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कारक हो।

उन्हाेंने कहा कि अधिकांश लोग विकसित भारत की रूपरेखा को नहीं समझते हैं, हम 2047 तक विकसित भारत की आकांक्षा रखते हैं। इसके लिए एक महान मैराथन मार्च चल रहा है। सभी हितधारक एकजुट हो रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में ही हम बहुत ऊंचे स्तर पर पहुंच गए हैं। हम ग्रह पर पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था हैं। वैश्विक स्तर पर, विकसित भारत को परिभाषित नहीं किया गया है। विकसित राष्ट्र को परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन आपको इसे कई तंत्रों के माध्यम से पढ़ना होगा और उनमें से एक है प्रति व्यक्ति आय। भारत को एक विकसित राष्ट्र का दर्जा देने के लिए हमें अपनी प्रति व्यक्ति आय को आठ गुना बढ़ाना होगा और इसके लिए कुछ बुनियादी बातों की आवश्यकता है।

उन्हाेंने कहा कि कोई भी समाज जो भ्रष्टाचार से प्रेरित हो, लालच से प्रेरित हो, संपर्क एजेंटों से प्रेरित हो, ऐसी व्यवस्था से प्रेरित हो जहां भ्रष्टाचार के बिना आपको नौकरी या अनुबंध नहीं मिल सकता, निश्चित रूप से युवाओं के उत्थान के खिलाफ है। भ्रष्टाचार प्रतिभा को खा जाता है, भ्रष्टाचार योग्यता को बेअसर कर देता है। एक बड़ा बदलाव हुआ है, सत्ता के गलियारे कभी भ्रष्ट संपर्क तत्वों से भरे हुए थे, जो निर्णय लेने में कानूनी रूप से लाभ उठाते थे, जो योग्यता पर विचार किए बिना अनुबंध और नौकरियां प्रदान करते थे, वे गलियारे निष्प्रभावी हो गए हैं। आपने देखा होगा कि अब देश में पारदर्शी जवाबदेह शासन है और यह गाँवों तक तकनीकी पैठ के द्वारा लाया गया है जहां बिना बिचौलियों के पैसा ट्रांसफर किया जाता है।

उन्हाेंने कहा कि शिक्षा के बिना कोई बदलाव नहीं हो सकता है, शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा होनी चाहिए, शिक्षा को उद्देश्यपूर्ण शिक्षा होनी चाहिए। शिक्षा को डिग्री से परे होना चाहिए, एक के बाद एक डिग्री हासिल करना शिक्षा के प्रति सही दृष्टिकोण नहीं है और यही कारण है कि तीन दशकों के बाद देश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई जो छात्रों को उनकी प्रतिभा का पूरा दोहन करने की अनुमति देती है। उन्हें डिग्री-उन्मुख शिक्षा से दूर कर दिया गया है। राष्ट्र ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अपनाया है। शिक्षा समानता लाती है, शिक्षा असमानताओं को कम करती है। शिक्षा सामाजिक व्यवस्था को समतल करने का एक बड़ा माध्यम है, शिक्षा लोकतंत्र को ऑक्सीजन प्रदान करती है। अगर हम अपने वेदों को देखें, तो शिक्षा और महिलाओं की भागीदारी पर बहुत जोर दिया गया था। हम बीच में कहीं रास्ता भटक गए, लेकिन वेदों में, वैदिक युग में, सबसे पहले, महिलाएं उसी पायदान पर थीं। वे नीति निर्माता थीं, वे निर्णयकर्ता थीं, वे मार्गदर्शक शक्ति थीं। हम कहीं रास्ता भटक गए थे, हम इसे तेजी से वापस पा रहे हैं। अभी भी हमारे पास एक व्यवस्था है। चलो, रोओ मत, तुम एक लड़के हो। एक आदमी बनो। अब यह बातें पुरानी हो गई हैं, कहने वाले को भी डर लगने लगा है।

कार्यक्रम से पहले उपराष्ट्रपति और उनकी धर्मपत्नी सुदेश धनखड़ ने अपनी माता की स्मृति में वृक्षारोपण किया। इसके बाद विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अशोक गुप्ता ने उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट कर उनका आभार प्रकट किया।

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