मेरठ। लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कॉलेज, मेरठ के अस्थि रोग विभाग में “विश्व क्लबफुट दिवस” मनाया गया। प्रत्येक वर्ष इसी दिन 3 जून को समाज में क्लबफुट के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है। क्लबफुट एक प्रकार की पैर से सम्बन्धित जन्मजात विकृति होती है, जिसमें जन्म के समय से ही बच्चे का पैर उसके सामान्य आकार का नहीं होता है। यह नवजात शिशुओं में पायी जाने वाली सबसे आम विकृति है जो हड्डियों और जोड़ों से सम्बन्धित होती है।
अस्थि रोग विभाग के सहायक आचार्य डॉ. कृतेश मिश्रा ने बताया कि एक रिसर्च के अनुसार, प्रत्येक 1000 जन्मों में से 1 बच्चा क्लबफुट से अवश्य प्रभावित होता है। यह संख्या अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो सकती है। यदि क्लबफुट का इलाज सही समय पर और सही तरीके से न किया जाये तो इसका परिणाम आजीवन विकलांगता और असहनीय दर्द हो सकता है। इसके विपरीत, यदि इस बीमारी का जन्म के ठीक बाद इलाज कर लिया जाये, तो इस स्थिति में सुधार के लिए सर्जरी की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। जागरूकता के आभाव के कारण यह आसानी से ठीक हो जाने वाली विकृति बहुत सारे बच्चों में स्थायी विकलांगता का कारण बन जाती है।
डॉ मिश्रा ने बताया कि इस स्थिति के इलाज की प्रक्रिया में शिशु के पैर के प्रभावित हिस्से पर साप्ताहिक प्लास्टर किया जाता है। इस प्रक्रिया को “पोंसेटि तकनीक” कहा जाता है। जन्म के 5-7 दिनों के बाद प्लास्टर शुरू करा देनी चाहिए। उचित समय पर इलाज से लगभग 95-98% प्रभावित बच्चे पूरी तरह से बिना किसी सर्जरी के ठीक हो सकते हैं। यदि गर्भावस्था के दौरान या जन्म के तुरन्त बाद क्लबफुट का निदान कर लिया जाता है, तो इस स्थिति में माता-पिता को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। प्राचार्य प्रो. आर सी गुप्ता ने बताया कि क्लब्फ़ुट का सही समय पर सही इलाज शीघ्र रिकवरी में सहायक होता है।