सहारनपुर। हम किसी को जो कुछ भी देना चाहते हैं वह हमारे पास होना चाहिए, अगर नहीं भी है तो देने से पहले वह हमे अपने पास पैदा करना होगा। शुभ कामना व अशुभ कामना अर्थात दुआ और बद्दुआ के मामले में भी ऐसा ही है, इन्हें भी देने से पहले हमे अपने भीतर पैदा करना होता है।
योग गुरु पद्मश्री स्वामी भारत भूषण ने कहा कि इन्हें हलके में न लें, ये दोनो ही अपना पूरा असर छोड़ती हैं ये किसी व्यक्ति विशेष के प्रति हों या राष्ट्र व समाज के प्रति, लेकिन रोचक की बात ये है कि इनका पहला असर कामना करने वाले व्यक्ति के अपने मन तन और जीवन पर ही होता है, दूसरे इंसान तक इनका असर बाद में पहुंचता है। शुभकामना का आधार शुभ चिंतन है जिस वजह से शुभकामना करने वाले व्यक्ति में सकारात्मकता, सदाशयता और हित चिंतन के भाव उसे आनंद आरोग्य और शांति देंगे जबकि अहित कामना भी मन तन और जीवन को ऐसा प्रभावित करेगी कि हमे कुंठा, नकारात्मकता, रोग और प्राणशक्ति का ह्रास देगी। इसीलिए भारतीय संस्कृति में ऐसी मान्यता है कि किसी के प्रति अशुभ कामना रखने से बचें। यहां तक कि वेदों में भी “तन्मे मन: शिव संकल्पमस्तु” कहते हुए अनेक शुभ संकल्प मंत्र दिए गए हैं। हमारे आपके घरों में शुभकामना का मंत्र “सर्वे भवन्तु सुखिन:” बार बार दोहराया जाता है।
योग गुरु पद्मश्री स्वामी भारत भूषण आज मोक्षायतन अंतर्राष्ट्रीय योग संस्थान में “भावमयी सृष्टि” विषय पर संवाद कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भावनाएं ही हैं जो हमे बहुत कुछ खास और बहुत कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित कर देती हैं, ये जरूर है कि हमारी भारतीय संस्कृति सर्वतोन्मुखी होने के कारण हमे सिर्फ भावमयी कामना करने तक सीमित नहीं रहने देती बल्कि उससे आगे कामना के अनुरूप कल्याणकारी कर्म करने की भी प्रेरणा देती है। हम कामना करें और काम न करें तो कुछ होने वाला नहीं क्योंकि शुभकामना करने वाले को भी इसका लाभ तभी होगा जब सत्कर्म करके वो शुभकामना फलीभूत भी हो। इसीलिए अपनी शुभकामना को सार्थक करने के लिए अपनी ओर से योगदान भी देने का विधान हमारी संस्कृति में है।
योग गुरु ने कहा कि बच्चे को टॉपर होने की शुभकामना देने के साथ ही हम उसे पढ़ाने में मेहनत भी करते हैं, केवल शुभकामना के भरोसे बच्चा टॉपर नहीं हो जाता, नव दंपति को शुभकामना के साथ उनकी खुशहाली बढ़ाने वाली तरह तरह की भेंट भी हम देते हैं। हमारी ये शुभकामना उन्हें भी बहुत कुछ करने की प्रेरणा देती है जिनके प्रति हम ये शुभकामना करते हैं। प्रयास यानी पुरुषार्थ के अभाव में केवल जुबानी शुभकामना मात्र के फलीभूत होने में सदैव संदेह ही रहता है। स्वामी भारत भूषण ने कहा कि मेरी या आपकी जो भी यात्रा है वह मातापिता, गुरुजनों और इष्टमित्रों की भावपूरित शुभकामनाओं के अनुरूप अपने आचरण में बदलाव और शुभकामना को फलीभूत करने के लिए समर्पित प्रयासों का ही सुफल है। हम सबके मामले में एक ही सत्य है कि शुभकामनाओं की अपनी महिमा है लेकिन पुरुषार्थ विहीन कामना बेअसर कामना मात्र ही रह जाती है और ऐसी कामना के भाव का असर केवल कामना रखने वाले के व्यक्तित्व को अवश्य ही प्रभावित करता है।
मोक्षायतन साधक परिवार अध्यक्ष एन के शर्मा ने बताया कि मोक्षायतन योग संस्थान में 1987 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह की मौजूदगी में आरंभ हुई नए दायित्व व्याख्यान माला के अंतर्गत विविध राष्ट्रीय, सामाजिक व आध्यात्मिक मूल्यों पर जारी संवाद श्रृंखला की कड़ी के रूप में ये आयोजन रखा गया था।