कानपुर। एक समय मरीजों के लिए जीवनदायक साबित होने वाले डॉक्टर दंपत्ति आज खुद स्वास्थ्य सेवाओं के अनुशासन में उलझकर अपने पद से बर्खास्त हो गए। गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज (जीएसवीएम) के न्यूरो सर्जन डॉ. राघवेंद्र गुप्ता और उनकी पत्नी डॉ. स्वाप्रित गुप्ता को प्राइवेट प्रैक्टिस करने के गंभीर आरोपों के चलते सेवा से हटा दिया गया है। यह फैसला तब लिया गया जब उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने पूरे मामले को गंभीरता से लिया और सख्त संदेश दिया कि सेवा में अनुशासन से समझौता नहीं होगा।
यह मामला सिर्फ एक नियम उल्लंघन का नहीं, बल्कि मरीजों के साथ उस विश्वासघात का है, जो उन्हें सरकारी अस्पताल में इलाज के नाम पर मिलता है। मरीज मेडिकल कॉलेज पहुंचते हैं इस उम्मीद में कि यहां योग्य डॉक्टर उनकी सेवा करेंगे, लेकिन जब वही डॉक्टर निजी अस्पतालों में अपने फायदे के लिए समय और ऊर्जा खर्च करें, तो यह न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि मानवता के खिलाफ भी।
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सरकारी अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस की इजाजत नहीं होती, परंतु यह डॉक्टर दंपत्ति लंबे समय से इस निर्देश की अनदेखी कर रहे थे। न केवल वे मेडिकल कॉलेज के सामने बल्कि फतेहपुर के एक निजी अस्पताल में भी मरीज देख रहे थे। शासन द्वारा उन्हें एक नए कार्य स्थल पर तैनाती के निर्देश भी दिए जा चुके थे, जिन्हें उन्होंने नजरअंदाज किया।
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इस पूरे मामले में एलआईयू की रिपोर्ट, मुख्यमंत्री कार्यालय से कराई गई जांच और जिलाधिकारी की गोपनीय रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से यह सामने आया कि दोनों डॉक्टर निर्देशों का उल्लंघन कर रहे थे। इसके बाद शासन ने उनके खिलाफ सख्त कदम उठाया।
इस कार्रवाई के साथ-साथ जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. हरि दत्त नेमि पर भी लापरवाही और अनियमितताओं के आरोप लगाए हैं और उनके खिलाफ शासन को पत्र लिखकर कारण बताओ नोटिस जारी कराया है।
एक तरफ जहां यह फैसला स्वास्थ्य व्यवस्था में अनुशासन स्थापित करने के लिए जरूरी माना जा रहा है, वहीं यह भी एक तकलीफदेह क्षण है जब समाज के लिए समर्पित माने जाने वाले चिकित्सक, व्यवस्था की अवहेलना के कारण अपना पद खो बैठते हैं।
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क्या बोले उप मुख्यमंत्री?
ब्रजेश पाठक ने कहा, “सरकारी डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस की इजाजत नहीं है। जो ऐसा करेगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई तय है। हम प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इसमें कोई समझौता नहीं होगा।”
इस फैसले से स्पष्ट है कि सरकार अब स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बेहद सख्त है। यह कार्रवाई बाकी डॉक्टरों के लिए भी चेतावनी है कि सरकारी सेवा में रहते हुए निजी लाभ की कोशिशें अब छिप नहीं सकतीं।