जीवन यात्रा को सुखमय बनाना चाहते हो तो काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह रूपी पांच शत्रुओं से स्वयं को बचाओ। यदि इनसे स्वयं को बचा लिया तो जीवन राह सुलभ हो जायेगी। इनसे यदि स्वयं को बचा नहीं पाये तो ये तुम्हें नोच-नोच कर खा जायेंगे। ये शत्रु जोक की तरह तुम्हारे जीवन के शान्ति रूपी रस को चूस लेंगे। ये शत्रु मनुष्य के जीवन में किसी आदर्श को पनपने नहीं देंगे, जीवन के चमन में आग भड़का देंगे। ये भयानक शत्रु राम की मर्यादाओं को धारण नहीं करने देंगे। कृष्ण के विवेक के फूल को खिलने नहीं देंगे, बुद्ध की करूणा की सरिता को बहने नहीं देंगे। महावीर की अहिंसा को विकसित नहीं होने देंगे। दयानन्द के तर्क दीप्त, वेद भक्ति और राष्ट्र भक्ति को पास नहीं फटकने देंगे। जीवन का कौन सा कल्याण है, जिसकी हत्या काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह रूपी शत्रुओं ने मिलकर नहीं की हो?