युवावस्था में मनुष्य धन कमाने और संचय करने में ही लगा रहता है, प्रभु स्मरण का समय वह निकाल ही नहीं पाता। उस अवस्था में वह सोचता है कि बुढापा प्रभु का नाम जपने के लिए सुरक्षित है, परन्तु क्या यह आवश्यक है कि तब तक शरीर सुरक्षित रहे? कहीं बुढापा आने से पहले ही राम नाम सत हो गया तो क्या करोगे। बुढापा आया तो इन्द्रियां शिथिल हो जायेंगी, ऐसे में नाम जप करने की शक्ति ही कहां बचेगी। इसलिए बुढापे में भजन साधना के बारे में सोचना अपने आप से धोखा करना है। भजन साधना दिखावे के लिए नहीं अपना जीवन सुधारने के लिए होती है और होनी भी इसी उद्देश्य से चाहिए। जवानी में यदि बिगडे रहे तो फिर बुढापे को सुधारने का लाभ ही क्या है? उस समय तो इन्द्रियों में निष्क्रियता आने लगेगी, कुछ करने के योग्य ही नहीं रह जायेंगे। प्रभु भजन में साधना में कितनी देर टिक पाओगे। इसलिए प्रभु भक्ति और साधना के लिए युवावस्था ही श्रेष्ठ समय है, सही समय है। इसी में जीविका कमाने के साथ प्रभु नाम की कमाई भी करते रहे। जो व्यक्ति अपने कार्यों और उत्तरदायित्वों को निष्ठा और ईमानदारी से सम्पादित करते रहते हैं उनका ध्यान युवावस्था में ही प्रभु भक्ति में शीघ्र लग जाता है।