Friday, November 22, 2024

गणतंत्र दिवस की 75वीं वर्षगांठ….गणतंत्र का अमृत काल, देश और हम!

आजादी के अमृत काल के बाद अब हम गणतंत्र के भी अमृत काल में प्रवेश कर रहे हैं । 2024 का गणतंत्र दिवस आजाद भारत का 75 वां गणतंत्र दिवस है यानी अब हम कह सकते हैं की स्वतंत्रता के साथ-साथ अब हम गणतांत्रिक शासन प्रणाली में भी अमृत घट भरने जा रहे हैं।

सबका साथ, सबका विश्वास
इसमें दो राय नहीं कि बीते कुछ वर्षों में भारत की प्रतिष्ठा अंतरराष्ट्रीय जगत में बहुत तेजी के साथ बढ़ी है न केवल बढ़ी है अपितु आज वह हर दृष्टि से विश्व के पहले पांच ताकतवर देशों में शुमार है। अब राजनीतिक लक्ष्य साधने की दृष्टि से विपक्ष भले ही कुछ भी कहे लेकिन इसमें शक नहीं है कि आज भारत की आवाज़ को विश्व के हर मंच पर महत्व एवं सम्मान मिल रहा है। यद्यपि यदि कोई यह कहता है कि यह सम्मान केवल किसी एक या दो सरकारों अथवा दलों या नेताओं की वजह से हुआ है तो यह भी कहना सही नहीं होगा क्योंकि इस पायदान पर पहुंचने के पीछे देश के आम व्यक्ति से लेकर खास व्यक्तियों तक के लहू पसीने का संघर्ष एवं श्रम तथा समर्पण काम कर रहा है।

2024 है बहुत खास
सन 2024 देश के लिए एक बहुत खास वर्ष सिद्ध होने जा रहा है इस वर्ष जहां देश एक बार फिर से लोकसभा चुनाव में होगा वहीं गणतंत्र दिवस भी अपना अमृत वर्ष देख रहा होगा। यदि चुनाव एवं गणतंत्र को आपस में जोड़कर देखा जाए तो दोनों ही एक दूसरे की पूरक एवं पर्याय भी कहे जा सकते हैं।
जऱा याद कीजिए जिस संक्रांति काल में भारत को स्वतंत्रता मिली थी लगभग उसी समय पाकिस्तान एवं बर्मा तथा दूसरे कई देश भी आजाद हुए थे, लेकिन आज इन देशों के मुकाबले भारत की हैसियत एवं उसका महत्व अलग ही नजर आता है तो इसके पीछे शायद खुद को सिद्ध करने का एक जुनून भी था।

हम सच्चे गणतांत्रिक
देशवासियों को याद होगा कि जब भारत को आज़ाद किए जाने की बातें हो रही थी तब ब्रिटेन ने कहा था कि भारतीय एक आज़ाद मुल्क होने के काबिल नहीं हैं। यदि उन्हें स्वाधीन कर दिया गया तो बहुत जल्द ही वें आपस में सिरफुटौवल करके नष्ट हो जाएंगे और 1946 तथा 1948 के दंगों को देखकर लगा था कि शायद वें लोग गलत नहीं थे, लेकिन इन दंगों के बाद कभी एक मुल्क रहे पाकिस्तान और भारत दोनों ने अलग-अलग राहें पकड़ी एक मज़हबी जुनून के साथ इस्लामिक स्टेट बनने के रास्ते पर चला तो दूसरे ने सच्चे मन से, सच्चा लोकतंत्र एवं सच्ची गणतांत्रिक पद्धति को अपनाया। बस यहीं से फर्क आना शुरू हो गया और यदि यह फर्क आया तो इसका श्रेय तात्कालीन सरकार एवं उसके प्रमुख को देने में कोई बुराई नहीं है।

आगे की सोच, प्रगति का पथ
राजनीति अपने तरीके से देखी और सोचती है और कदम बढ़ाती है लेकिन समय की मांग और जीवन की सच्चाई यह कहती है कि पीछे पलट कर बार-बार पीछे पलट कर देखने वाले जीवन की रेस में पीछे जाते हैं इसमें व्यक्ति हों या राष्ट्र दोनों पर ही इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है इसलिए हमने भूतकाल में क्या किया कितना गर्व एवं गौरव हासिल किया या फिर हमसे क्या गलतियां हुई क्या पाप हुए कितनी कमी आ रही उन पर बहुत ज्यादा वक्त बर्बाद करने से बेहतर है आगे सोचा जाए जो आगे की सोच कर चलता है वह निश्चित रूप से आगे जाता है गणतंत्र के अमृतकाल वर्ष में भी देश को इसी नजरिए के साथ आगे बढ़ाना है।

जरूरी है आत्म मूल्यांकन
यदि पिछले वर्ष पर एक नजर डाली जाए तो बहुत सारी अच्छी एवं खराब बातें याद आ सकती हैं। अच्छी बातों में चंद्रयान मिशन, आदित्य मिशन, अर्थव्यवस्था की दृष्टि से पांचवें स्थान पर पहुंचना, कृषि में बंपर उत्पादन के साथ-साथ खेलों में वैश्विक प्रतियोगिताओं में लगातार निखरता हुआ प्रदर्शन हमें स्वर्णिम गणतंत्र का एहसास दिला सकते हैं लेकिन साथ ही साथ जिस प्रकार से अपराध बढ़ रहे हैं खासतौर पर महिलाओं एवं बच्चों के प्रति जो अमानवीय दृष्टिकोण पिछले वर्ष देखने को मिला वह हमारी सारी भौतिक प्रगति पर एक बड़ा प्रश्न वाचक चिन्ह लगाने के लिए काफी है।

आई क्यू यानी बुद्धि लब्धि के प्रयोग से भौतिक उपलब्धियां तो अधिक प्राप्त की जा सकती हैं, लेकिन यदि इसके साथ-साथ ई क्यू यानी इमोशनल कोशिएंट अर्थात भावात्मक संवेग को भी जोड़ लिया जाए तो फिर हम भौतिक के साथ-साथ आत्मिक एवं नैतिक स्तर पर भी बहुत आगे जा सकते हैं। देश को इन अमानुषिक कांडों से बहुत सीखना होगा और यदि गणतंत्र के अमृत वर्ष को सचमुच प्रगति का अमृत चाहिए तो हमें बुद्धि लब्धि के साथ-साथ भावात्मक संवेग को भी बचा कर रखना होगा।

गणतंत्र के आदर्शों का पालन करें
क्योंकि आने वाले संभवत: मार्च- अप्रैल के महीने लोकसभा चुनाव के होंगे और चुनाव में वह सब होगा जो अब तक होता आया है शायद उससे भी कहीं अधिक हो जाए। पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपना अपना वर्चस्व सिद्ध करने के लिए हर हाथकंडा अपनाएंगे हो सकता है सही गलत, धर्म अधर्म, निरपेक्षता व पक्षपात सब सिद्धांत व मानक उठाकर एक तरफ रख दिए जाएं और ‘एवरीथिंग इस फेयर इन लव एंड वॉर के सिद्धांत के चलते येन केन प्राकारेण विजय श्री प्राप्त करने के प्रयास किए जाएं। हो सकता है सरकार तीसरी बार वापस लौटे, संभव यह भी है कि किसी को भी बहुमत न मिले या फिर प्रतिपक्ष ही सत्ता में आ जाए मगर यही गणतंत्र की परीक्षा का सबसे बड़ा परीक्षणकाल होता है चुनाव में अपनाई गई नीति और रीति केवल चुनाव तक सीमित नहीं रहती अपितु आगे तक इसका प्रभाव जाता है।

इसलिए गणतंत्र के इस अमृतकाल में बेहतर हो कि राजनीति एक आदर्श स्थापित करें जो भी लड़े हार जीत की भावना से हटकर जनकल्याण की भावना के साथ लड़े। लोकतंत्र एवं गणतंत्र के आदर्शों का पालन करें और जीतने के बाद पराजित के साथ अच्छा व्यवहार करें तो पराजित होने के बाद विजेता का सम्मान करें और उसके साथ सहयोग करें हालांकि आज के राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा होता नहीं दिखता है। पर काश ऐसा हो जाए तो गणतंत्र का यह अमृतकाल सचमुच देश को राजनीति में निरंतर व्याप रहे विष से बहुत कुछ निजात दिला सकता है।

भारतीयों की एक खास बात
वैसे हम भारतीयों की एक खास बात यह है कि हम आपस में किसी भी धर्म, जाति या राजनीतिक विचारधारा को मानें आपस में कितने ही मतभेद हो जाएं पर मनभेद यहां बहुत कम होता है और ‘बीती ताहि बिसार दे के सिद्धांत पर चलते हुए किसी फूलों के गुलदस्ते की तरह हम भारत रूपी उपवन का वैविध्य व एकात्मवाद बनाए रखते हैं । यही इस देश और गणतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती भी है उम्मीद है आने वाले समय में भी यह सुंदरता बनी रहेगी।

अंत में हर भारतीय की यही कामना होगी कि 75 वर्षों का यह शानदार सफऱ सदियों तक सफलता की ऊंचाइयां छूते हुए विश्व को नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता एवं कुशलता देश को दे तथा गणतंत्र के आखिरी आदमी तक रामराज्य जैसी समृद्धि सुख एवं संतुष्टि पहुंचे तथा शासक वर्ग को सदैव जनकल्याणोन्मुखी बनाए रखे।
-डॉ घनश्याम बादल
(लेखक देश के प्रख्यात स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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