अपने देश में वोटर ही असली राजा है,अगर वह वोट देते समय जागरूक रहे तो जिसे चाहे राजा बना सकता है।भारतीय संविधान के तहत गठित गणतन्त्र में गण में से तन्त्र का संवाहक चुनने के लिए आजादी के बाद से अभी तक विभिन्न तरीके अपनाये गए। गांव स्तर से लेकर राज्य और केन्द्र स्तर तक अपना जनप्रतिनिधी चुनने के लिए जो तरीके अपनाये गए उनमें हाथ उठाकर अपना जनप्रतितिधी चुनने से लेकर ईवीएम वोटिंग मशीन तक का उपयोग मतदाताओं के लिए वरदान बना।
बात ज्यादा पुरानी नही है जब गांव में लोग अपना प्रधान व ग्राम सदस्यों का चुनाव हाथ उठाकर करते थे यानि तब न बैलट पेपर का झंझट था, न वोटिंग मशीन की जरूरत थी, बस हाथ उठाओं और हो गया वोट। हरिद्वार जिले के गांव खुब्बनपुर निवासी मास्टर सुमन्त सिंह आर्य ने अपनी सरकारी नोकरी के दौरान चार बार ऐसे चुनाव कराये जब वोट बैलट के बजाए हाथ उठाकर दिया गया था। ग्राम सभाओं के ग्राम प्रधान व ग्राम सभा सदस्यों के चुनाव सन 1962 तक हाथ उठाकर ही कराये जाते थे, लेकिन जब हाथ उठाकर वोट देने के कारण लोगों के बीच आपसी रंजिश बढने लगी तो हाथ उठाकर वोट देने की सरल व सुगम परम्परा को बन्द करना पडा।
हालांकि आजादी के पहले तक तो हाथ उठाकर वोट डालने की परम्परा सामान्य थी, लेकिन तब भी कभी बडे सदनों के लिए हाथ उठाकर वोट डालने की प्रक्रिया को नही अपनाया गया।
अपने जीवनकाल में स्वाधीनता सेनानी सत्यवती सिन्हा अपने जीवनकाल में अपने अनुभव सुनाते हुए बताया था कि पहले लोग वोट का मतलब तक नहीं समझते थे। एक बार जब वे लोगो को कांग्रेस के पक्ष में वोट डालने के लिए कहने गई और उन्हें उस समय के चुनाव चिन्ह ‘बैलों की जोडी ‘के बारे में बताया तो गांव की महिलाओं ने वोट डालने के लिए मतदान केन्द्र पर जाने के बजाए खेतों में जाकर बैलों की जोडी के सामने पांच पांच पैसे चढा दिये और समझ लिया कि उन्होंने मतदान कर दिया है।
ग्राम प्रधान रह चुकी कमला बमोला का कहना है कि मतदान के लिए आज भी कई स्थानों पर लोगों को कई-कई किमी तक पैदल जाना पडता है जो कि एक गलत व्यवस्था है। उन्होंने माना कि चुनाव में काफी सुधार हुए है, लेकिन अभी भी चुनाव धन बल की विकृति से मुक्त नहीं हो पाया है। गरीब व आम आदमी आज भी चुनाव लडने का साहस नहीं जुटा पाता। ऐसे में कैसे माना जाए कि लोग उस आम जनता में से चुन कर जा रहे है, जिनकी संख्या कम से कम नब्बे फिसदी है। इसी कारण 90 प्रतिशत लोग आज भी चुनाव न लड पाने की हैसियत न होने के कारण चुनाव से दूर है और जनप्रतिनिधी बनने से वंचित है।
इसी तरह अन्तर्राष्टीय खिलाड़ी डॉ आदेश कुमार शर्मा इस बात से दुखी है कि चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशी आज भी वोटरो को प्रलोभित कर वोट पाना चाहते है और जब ऐसे लोग चुनाव जीत जाते है तो चुनाव बाद 5 साल तक फिर वे नजर नहीं आते ऐसे प्रत्याशियों को नकारने पर वे जोर देते है, लेकिन उन्होंने चुनाव आयोग द्वारा चुनाव सुधार की दिशा में टी एन शेषन के समय की गई सख्ती का स्वागत किया था। उनकी सोच है कि चुनाव आयोग टीएन शेषन के समय से ही अच्छे रास्ते पर चलने लगा था, परन्तु अब फिर उसकी विश्वनीयता ईवीएम पर सवाल उठने के कारण घटने लगी है, लेकिन एक बार विधायक या सांसद बनने पर उनकी आय मे कई सौ गुना वृद्धि कैसे हो जाती है इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
चुनाव आयोग द्वारा दिल्ली में पिछले चुनाव में मतदान के दिन कोई भी प्रत्याशी मतदान स्थल से 100 मीटर दूरी तक मतदाताओं को हाथ जोडकर नमस्ते तक नहीं कर पाएगा, का प्रावधान लोगों को पसंद आया। ऐसे में भले ही एक दिन यानि मदतान के दिन नहीं सही परन्तु मतदाता है वास्तव में लोकतन्त्र का राजा जो अपनी वोट के माध्यम से देश का भविष्य निर्धारित करता है।
-डा. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट