Saturday, April 27, 2024

आनलाइन बाल यौन शोषण सामग्री में विश्वस्तर पर 87 फीसदी वृद्धि, भारत में भी बड़ा खतरा

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नयी दिल्ली- दुनिया में आनलाइन बाल यौन शोषण सामग्री के मामलों में 2019 के बाद से 87 फीसदी की वृद्धि हुई है तथा गेमिंग साइटों से भी बच्चों के यौन शोषण का खतरा बढ़ा है। यह तथ्य गैर सरकारी संगठन वीप्रोटेक्ट ग्लोबल अलायंस की ताजा रिपोर्ट में दिया गया है।

बच्चों के लिए आनलाइन खतरे के बारे में वीप्रोटेक्ट ग्लोबल अलायंस ने मंगलवार को जारी अपनी चौथी वैश्विक रिपोर्ट में कहा है कि वैश्विक स्तर पर 3.2 करोड़ से अधिक ऐसे मामले की रिपोर्ट की गयी है जहां आनलाइन माध्यमों में बाल यौनशोषण से जुड़ी सामग्री प्रस्तुत की गयी थी। रिपोर्ट के अनुसार भारत चिंताजनक रूप से उन देशों में से एक है जहां बच्चों के लिए आनलाइन माध्यमों पर आसन्न खतराें का जिक्र इस रिपोर्ट में किया गया है।

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इसमें यह भी पाया गया कि 2020 से 2022 (इंटरनेट वॉच फाउंडेशन) के बीच सात से 10 साल के बच्चों की स्व-निर्मित यौन कल्पना की सामग्रियों में 360 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस रिपोर्ट के अनुसार चौंकाने वाली बात यह भी है कि सोशल गेमिंग प्लेटफॉर्म पर बच्चों के साथ बातचीत 19 सेकंड के भीतर उच्च जोखिम वाली ग्रूमिंग स्थितियों में बदल सकती है, जबकि ग्रूमिंग का औसत समय केवल 45 मिनट है।

वीप्रोटेक्ट ग्लोबल अलायंस के अनुसार सोशल गेमिंग का माहौल वयस्क और बच्चे के बीच मेल-जोल, आभासी उपहारों के आदान-प्रदान और पब्लिक रैंकिंग प्रणालियों की सुविधा प्रदान करता है, उससे ऐसे जोखिम काफी बढ़ जाते हैं। संगठन की इस शोधपरक

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यौन शोषण से जुड़े वित्तीय उत्पीड़न में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज होने का उल्लेख किया गया है। इसके तहत 2021 में जहां बच्चों से वसूली के 139 मामले सामने आये थे, वे 2022 में बढ़कर 10,000 से अधिक हो गए। ऐसी घटनाओं में अपराधियों का अपनी यौन तस्वीरें और वीडियो साझा करने के लिए बच्चों को तैयार करना और हेराफेरी करना और फिर पैसे कमाने के लिए उनसे जबरन वसूली करना शामिल है। जबरन वसूली करने वाले लोग युवा लड़कियों के रूप में अपने को ऑनलाइन पेश होते हैं और मुख्य रूप से सोशल मीडिया के माध्यम से 15-17 वर्ष की आयु के लड़कों से संपर्क करते हैं। इसमें कहा गया है कि कई मामलों में, ऐसी घटनाओं के कारण बच्चों ने दुखद रूप से, अपनी जान ले ली।

नयी प्रौद्योगिकी उन खतरों को बढ़ा रही है, जिनका बच्चों को ऑनलाइन सामना करना पड़ता है। 2023 की शुरुआत से, अपराधियों द्वारा बाल यौन शोषण सामग्री बनाने और बच्चों का शोषण करने के लिए जेनेरेटिव एआई के उपयोग के मामले भी बढ़ रहे हैं। थॉर्न ने पाया कि फिलहाल, अपराधी समुदायों के नमूने में साझा की गई बाल यौन शोषण सामग्री की एक प्रतिशत से भी कम फ़ाइलें, बाल यौन शोषण की फोटोरियलिस्टिक कंप्यूटर-जनरेटेड इमेजरी (सीजीआई) हैं, लेकिन अगस्त 2022 से इसकी मात्रा लगातार बढ़ी है। पिछले महीने, ऑस्ट्रेलिया ने वैश्विक स्तर पर पहली बार, ऐसे उपाय किए हैं, जिसके तहक बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की ज़रूरत है कि एआई उत्पादों का उपयोग बाल यौन शोषण की डीपफेक छवियां और वीडियो बनाने के लिए नहीं किया जा सके।

अर्पण–टुवर्ड्स फ्रीडम फ्रॉम सेक्सुअल एब्यूज़ की वरिष्ठ निदेशक डॉ मंजीर मुखर्जी ने कहा ,“ ग्लोबल थ्रेट असेसमेंट 2023 आ गया है और इसने मनोचिकित्सकों के लिए जोखिम के बारे में बच्चों की समझ और ऑनलाइन खतरों के तरीके के बीच के फर्क को कम करने तथा विचारणीय कुछ महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान की है।”

रिपोर्ट में ‘डिसरप्टिंग हार्म’ अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि ऑनलाइन दुर्व्यवहार के 60 फीसदी मामलों में अपराधी बच्चे का कोई न कोई परिचित रहा है। इस तथ्य से यह मिथक टूटता है कि ऑनलाइन यौन शोषण, मुख्य रूप से अजनबियों द्वारा किया जाता है।

वीप्रोटेक्ट ग्लोबल अलायंस के कार्यकारी निदेशक इयान ड्रेनन ने कहा, “हमें दुनिया भर में ऑनलाइन होने वाले बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार पर ध्यान देने और इन पर पहल करने की ज़रूरत है। नयी तकनीकी क्षमताएं मौजूदा जोखिम को और बढ़ा देती हैं और भारत में भी स्थिति अलग नहीं है। बच्चों की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता। ”

उन्होंने कहा कि बच्चों को ऐसी परेशानी से बचाने के लिए, सरकारों, ऑनलाइन सेवा प्रदाताओं, चैरिटी और कंपनियों को अपनी कोशिश बढ़ानी चाहिए और बदलाव लाने तथा बच्चों की सुरक्षा के लिए मिलकर काम करना चाहिए।

यूनिसेफ बाल संरक्षण विभाग की निदेशक और वीप्रोटेक्ट ग्लोबल अलायंस के पॉलिसी बोर्ड की सदस्य शीमा सेन गुप्ता ने कहा, “ प्रौद्योगिकी की तीव्र प्रगति, बाल संरक्षण और न्याय प्रणालियों पर दबाव डाल रही है, जो कई देशों में पहले से ही कमज़ोर हैं। हमें तत्काल रोकथाम पर बड़े पैमाने पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है – इसके लिए सरकारों को बच्चों को यौन हिंसा से बचाने के लिए साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेपों में निवेश करना होगा और कंपनियों को संभावित नुकसान को रोकने के लिए डिजिटल उत्पादों और सेवाओं को विकसित करते समय निहित रूप से बाल-अधिकार सिद्धांतों को अपनाना होगा। हमें बच्चों को सभी प्रकार के ऑनलाइन बाल यौन शोषण से बचाने के लिए मज़बूत कानून की भी ज़रूरत है, जो तेज़ी से विकसित हो रही प्रौद्योगिकियों के खिलाफ भविष्य में भी सुरक्षा प्रदान कर सके।”

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