Saturday, September 28, 2024

अपने दुख को न कुरेंदे

एक कवि ने कहा है-
यह जीवन क्या है? निर्झर है।
मस्ती ही इसका पानी है।
सुख-दुख के दोनों तीयें लें।
चल रहा राह मनमानी है।
जीवन में सुख का पक्ष आसानी व आराम से कट जाता है, मगर दुख का पक्ष, बड़ा बोझिल हो जाता है। आज इस दुख वाले पक्ष को लेकर, कुछ बिन्दुओं में रखकर हम चर्चा करते हैं।
– हमेशा, हर कहीं, हर किसी के लिए अपना दुख सबसे बड़ा होता है। उसे लगता है कि उस पर दुख का पहाड़ ही टूट पड़ा है।
अपना दुख जब हमें बड़ा व पहाड़ के समान लगता है तो हम रोने-बिलखने लगते हैं। जब हमें दुख बड़ा लगता है तो हम दुखी हो जाते हैं। हर आने-जाने वाले से अपने दुख का रो-रोकर, लंबा-चौड़ा बखान करने लगते हैं। घंटो पश्चाताप करते हैं। इतना भी याद नहीं रखते कि सामने वाले के पास भी समय नाम की चीज है। खुद भी खीज सकता है या तंग आ सकता है। हम लोगों के घर-जाकर व रास्ते पर रोककर कम पहचान व थोड़ी सी पहचान वालों को अपना दुखड़ा सुनाते हैं। वे तंग आते हैं। मगर उनके सामने मर्यादा का सवाल खड़ा रहता है।
– जब हम अपने दुख को बड़ा समझते हैं और बढ़-चढ़कर महसूस करते हैं तो लोगों की हमदर्दी व सांत्वना पा लेते हैं और हमदर्दी, सांत्वना पाकर हम शांत नहीं होते, वरन् और ज्यादा परिणाम में इन्हें प्राप्त करने के लिए ज्यादा जुझारू बन जाते हैं। फोन पर व सोशल मीडिया पर घंटो चैटिंग करते रहते हैं। हम ये कोशिश नहीं करते कि दुख से किस तरह उबरा जाए और सामान्य हुआ जाए, बल्कि हम घाव को कुरेदने में लगे रहते हैं।
– अपने दुख व कष्ट के पीछे हम इतना पागल हो जाते हैं कि सामने वाले के दुख-दर्द को जानने-समझने व धीरज बंधाने की कोशिश नहीं करते हैं या इच्छा नहीं करते हैं। तेरा दुख बड़ा या मेरा दुख बड़ा, इस बात पर हम कई बार तू-तू, मैं-मैं भी कर लेते हैं। हम दुख में हैं तो हमें दूसरों की मदद की जरूरत पड़ती है, यह हमें पता रहता है, मगर सामने वाला दुखी है तो उसे भी मदद की जरूरत है, यह ज्यादा ध्यान में नहीं रखते हैं। हम चुपचाप खिसक जाते हैं।
– हम जिस दुख के वश में होकर अपना सुख-चैन गवां देते हैं, वह दुख जब विराम नहीं पाता है तो हमें अंदर-बाहर से खोखला करने लगता है। जो दुख परिणाम में छोटा था वह  व्यापक व भयंकर हो जाता है।
उपरोक्त पांच बिन्दुओं को ध्यान में रखकर हमें यह मत बनाना चाहिए कि दुख उस पीड़ादायक घाव जैसा होता है, जिसकी मरहम पट्टी कर देने पर दब जाता है और कुरेदने पर बढ़ जाता है। इसलिए इसे दबाना ही अच्छा है।
हां यादें आती है, मन को दुख भी पहुंचता है, आंसू भी बहते हैं, मगर आत्मनियंत्रण से उसे दमित कर देना व मन को बांट लेना सीख ही लेना चाहिए।
आर. सूर्य कुमारी – विभूति फीचर्स

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