विवाह भारत की सनातन अर्थव्यवस्था है. इसे समाज ने ऐसा रचा बना है की इससे समाज के बड़े वर्ग के आर्थिक कार्यकलाप जुड़ गए हैं। यह सनातन आधार पर प्राकृतिक घटना की तरह बना दी गई है ताकि यह सनातन (निरंतर) घटती रहे और आय के अवसर भी सबको मिलते रहें।
इसके लिए कोई अलग से मेला, एक्सहिबिशन, फेस्टिवल आयोजित करने की जरुरत नहीं है। यह बुनावट ऐसी थी की हर समाज में घर घर बुन दी गई थी जिसमें समाज की आर्थिक भागीदारी सुनिश्चित हो गई थी। उसका असर यह है कि आज भी शादियों के मौसम में गांव कस्बों से लगायत शहरों के बाजार गुलजार हो जाते हैं। यह भारत के समाज के ताने बाने में बुनी एक ऐसी सनातन अर्थव्यवस्था है जो मुश्किल से मुश्किल समय में भी भारत को मंदी से उबार ले जाती है। अगर आप जितना इस विवाह संस्कार से दूर भागेंगे उतना अपने सनातन अर्थव्यवस्था से दूर भागेंगे।
हो सकता है भारत की अर्थ विरोधी ताकतें भारत की इस अदृश्य ताकत के खिलाफ बिना उत्सव या शादी की व्यवस्था को हवा भी दे रही हों, इसका हमें गहन अध्ययन करना चाहिये। भारत में विवाह सिर्फ एक संस्कार की घटना नहीं है यह अपने आप में एक औद्योगिक घटना है, जो समाज के कई वर्गों को अपने आर्थिक ताने बाने में बुनती है। यह समाज के आर्थिक जीवन को सतत चलने देने के लिए भारत में बुनी गई सामाजिक आर्थिक घटना है जो स्वत: ही एक घटना के माध्यम से कइयों के आजीविका का माध्यम बन जाती है और यह व्यवस्था आदि काल से है, इसलिए यदि इसे भारत का सनातन उद्योग कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्यूंकि यह उद्योग अपने आप में कई उद्योगों का प्लेटफॉर्म है. चाहे पुराने समय की शादियां हों या वर्तमान की, सारी शादियां अपने साथ में आर्थिक उद्योग और समाज के सभी वर्गों के ताने बाने को जोड़ती हैं ताकि इसे सामाजिक अर्थव्यवस्था का आधार बनाया जा सके. एक जोड़ा जब शादी का समारोह करता है तो वह सिर्फ शादी ही नहीं करता वह समाज की इकॉनमी में भी योगदान देता है।
पुराने ज़माने की शादियों में और आज की शादियों में कोई बेसिक फर्क नहीं आया है समाज के सभी वर्गों को जोडऩे के साथ साथ समारोह उद्योग का आकार बढ़ गया है और समय के साथ बदलते हुए कई नए उद्योग जुड़ गए हैं। पहले और आज भी ब्राह्मण समाज, स्वर्णकार समाज, चर्मकार समाज, लोहार समाज, कुम्हार समाज, बढ़ई समाज, हलवाई समाज, कपडा सिलने वाला टेलर, बैंड बाजा, व्यापारी समाज , किसान समेत कई लोग जुड़े होते हैं, लेकिन बदलते परिवेश के साथ साथ इसमें व्यापार के नए नए आयाम और कई वर्ग जुड़ गए हैं और इस ताने बाने का विस्तार हो गया है।
आज की शादी में जो सामाजिक अर्थव्यवस्था के अंगों का जुड़ाव हुआ हैं उसमें बड़े पैमाने पर वेन्यू और होटल रिसोर्ट हाल लान आदि का व्यापार करने वाले, खानपान की व्यवस्था करने वाले, सब्जी और किराना का व्यापार करने वाले, बैंड बाजा वाले, फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करने वाले, वेडिंग प्लानर, शादी के जेवर का व्यापार करने वाले, कई समय के डिनर के कारण कैटरिंग का व्यापार करने वाले, लेडीज संगीत जैसे कई कार्यक्रमों का विस्तार, फूल का व्यापार करने वाले, पोशाक और ड्रेस डिज़ाइनर, बाल, मेकअप और मेहंदी का काम करने वाले, लाइट एवं सजावट का काम करने वाले, डीजे एवं संगीत का काम करने वाले, दूध वाला, हलवाई, मिठाई, वाहन व्यापार के साथ कई तरह के ट्रासंपोर्ट, उपहार का व्यापार, निमंत्रण/स्टेशनरी का व्यापार का व्यापार करने वाले ये सब जुड़े रहते हैं।
एक शादी में जितने भी खर्चे होते हैं वह इन्ही सब आयोजनों के बहाने समाज के नीचे तक सौदे के रूप में हस्तांतरित होते हैं। इसीलिए भारतीय समाज में शादी के आयोजन की संरचना मौजूदा बिजनेस प्रमोशन या व्यापार मेले की जगह पर कहीं ज्यादे बेहतर मजबूत और निश्चित है। हमारे सामाजिक व्यवस्था के निर्माताओं ने शादी जैसी घटना को भी एक आर्थिक घटना का रूप देकर यह सुनिश्चित किया था की प्राकृतिक और सतत रूप से एक सामाजिक घटना को आर्थिक वितरण का आधार कैसे बनाया जा सकता है। ऐसा अनुमान है कि भारत में नवम्बर 2023 से लगभग आगे के 4 माह के दौरान 38 लाख से अधिक शादियों का आयोजन होगा और ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है की इस 4 माह में लगभग 4.75 लाख करोड़ की राशि खर्च होगी।
ऐसा भी एक सर्वे है कि भारत में इस वर्ष विवाह के इस लगन के मौसम सबसे अधिक खर्च करने का विश्व रिकार्ड बनाया जा सकता है। शादी के विभिन्न कार्यक्रमों में विभिन्न मदों पर होने वाले खर्च के सम्बंध में भी अलग अलग अनुमान लगाए गए हैं। जैसे कपड़ों और ज्वेलरी पर एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि, मेहमानों की खातिरदारी पर साठ हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि, शादी समारोह से जुड़े कार्यक्रमों पर साठ हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च होने जा रही है।
भारत के अलावा दुनिया के किसी भी देश के पास एक ऐसा आटोमेटिक बाजार और उत्सव नहीं है जो महीनों भारी भरकम राशि खर्च के माध्यम से समाज के सभी वर्गों और इकॉनमी में वितरित करता हो. इसके लिए उन्हें समय समय पर उत्सव डिज़ाइन करता है जबकि भारत में यह नैचुरली डिज़ाइन है। भारत के उत्सवधर्मी प्रकृति के प्रभाव के कारण ही इसी अक्टूबर 2023 में करीब 23 लाख वाहनों की बिक्री का आंकड़ा आया है। जिसमें बताया जा रहा है कि 4 लाख चारपहिया तो 19 लाख दोपहिया वाहन हैं।
त्यौहार के बाद आने वाले शादियों के मौसम में भी वाहनों की जबरदस्त बिक्री होने की सम्भावना है। आज भारत में नव धनाढ्य वर्ग की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। अत: समस्त मेहमानों सहित अब डेस्टिनेशन वेडिंग का प्रचलन भी भारत में बहुत बढ़ गया है। इसलिए ऐसी शादियों का औसत खर्च एक करोड़ से ज्यादा होने लगा है ऐसा अनुमान है जो एक तरह से पुन: व्यापार के कई वर्गों में खर्च के माध्यम से वितरित हो रहा है।
डेस्टिनेशन वेडिंग के इकॉनमी में योगदान को देखते हुए पीएम मोदी ने भी कहा है की विदेशों में शादी कर वहां खर्च करने की बजाय भारत में ही शादी कर भारत में ही खर्च करिये। इस प्रकार देखें तो भारत के ताने बाने में शादी जैसी घटना ऐसी बुनी गई है जिससे दो जोड़े ही नहीं बने इससे समाज के सभी वर्गों को कुछ काम भी मिले। इसीलिए हमने देखा होगा की भारत के गांवों और कस्बों में शादी के मौसम में व्यापार और खुशहाली ज्यादा होती है। भारत के इस सांस्कृतिक घटना जो की विश्व में यूनिक है इसे हमें रोकना नहीं है अन्यथा यह भारत के सनातन अर्थशास्त्र और अर्थव्यवस्था पर ब्रेक लगाने देने जैसा होगा।