Friday, April 18, 2025

मातृभाषा में शिक्षा, एआई टूल्स से बदलेगा परिदृश्य: मोदी

नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रियल टाइम ट्रांसलेशन एआई टूल्स को क्रांतिकारी बताते हुए कहा है कि नयी शिक्षा नीति में अपनी भाषा में शिक्षा देने से प्रतिभाएं उभर कर आएगी और शिक्षा में भाषायी दिक्कत का संकट खत्म हो जाएगा।

मोदी ने आकाशवाणी पर प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 108वी कड़ी में ‘रियल टाइम ट्रांसलेशन’ और अपनी भाषा में बच्चों को शिक्षा देने के महत्व को समझाया और कहा कि आने वाली समय में इससे भाषायी दिक्कत खत्म होगी और बच्चे अपनी भाषा में शिक्षित होकर अपनी प्रतिभा का अनोखा प्रदर्शन कर सकेंगे और नई शिक्षा नीति इस दिशा में क्रांतिकारी साबित होगी।

उन्होंने कहा, “कुछ दिन पहले काशी में एक अनुभव हुआ था, जिसे मैं ‘मन की बात’ के श्रोताओं को जरुर बताना चाहता हूँ। आप जानते हैं कि काशी-तमिल संगमम में हिस्सा लेने के लिए हजारों लोग तमिलनाडु से काशी पहुंचे थे। वहां मैंने उन लोगों से संवाद के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल भाषिणी का सार्वजनिक रूप से पहली बार उपयोग किया। मैं मंच से हिंदी में संबोधन कर रहा था और एआई टूल भाषिणी की वजह से वहां मौजूद तमिलनाडु के लोगों को मेरा वही संबोधन उसी समय तमिल भाषा में सुनाई दे रहा था। काशी-तमिल संगमम में आए लोग इस प्रयोग से बहुत उत्साहित दिखे। वो दिन दूर नहीं जब किसी एक भाषा में संबोधन हुआ करेगा और जनता रियल टाइम में उसी भाषण को अपनी भाषा में सुना करेगी।”

उन्होंने कहा, “ऐसा ही फिल्मों के साथ भी होगा जब जनता सिनेमा हॉल में ,एआई की मदद से रियल टाइम ट्रांसलेशन सुना करेगी। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जब ये टेक्नोलॉजी हमारे स्कूलों, हमारे अस्पतालों, हमारी अदालतों में व्यापक रूप से इस्तेमाल होने लगेगी, तो कितना बड़ा परिवर्तन आएगा। मैं आज की युवा-पीढ़ी से आग्रह करूँगा कि रियल टाइम ट्रांसलेशन से जुड़े एआई टूल्स को और एक्सप्लोर करें, उन्हें 100 फीसदी फुल प्रूफ बनाएं।”

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भाषाओं के संवर्धन को लेकर उन्होंने कहा ‘बदलते समय में हमें अपनी भाषाएँ बचानी भी हैं और उनका संवर्धन भी करना है। मैं झारखंड के आदिवासी गढ़वा जिले के एक गांव के बारे में बताना चाहता हूँ। इस गांव ने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने की अनूठी पहल की है। गढ़वा जिले के मंगलो गांव में बच्चों को कुडुख भाषा में शिक्षा दी जा रही है। इस स्कूल का नाम है, ‘कार्तिक उराँव। आदिवासी कुडुख स्कूल में 300 आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं। कुडुख भाषा, उरांव आदिवासी समुदाय की मातृभाषा है। कुडुख भाषा की अपनी लिपि भी है, जिसे ‘तोलंग सिकी’ नाम से जाना जाता है। ये भाषा धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही थी जिसे बचाने के लिए इस समुदाय ने अपनी भाषा में बच्चों को शिक्षा देने का फैसला किया है। इस स्कूल को शुरु करने वाले अरविन्द उरांव कहते हैं कि आदिवासी बच्चों को अंग्रेजी भाषा में दिक्कत आती थी इसलिए उन्होंने गांव के बच्चों को अपनी भाषा में पढ़ाना शुरू कर दिया। उनके इस प्रयास से बेहतर परिणाम मिलने लगे तो गांव वाले भी उनके साथ जुड़ गए। अपनी भाषा में पढ़ाई की वजह से बच्चों के सीखने की गति भी तेज हो गई।”

उन्होंने कहा, “देश में कई बच्चे भाषा की मुश्किलों की वजह से पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते थे। ऐसी परेशानियों को दूर करने में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से भी मदद मिल रही है। हमारा प्रयास है कि भाषा, किसी भी बच्चे की शिक्षा और प्रगति में बाधा नहीं बननी चाहिए।”

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