जांच एजेंसियों द्वारा पूछताछ के लिए बुलाए जाने की आंच आखिरकार आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और जेल जाने से बचे एक मात्र बड़े नेता अरविन्द केजरीवाल तक भी आ ही पहुँची है। ज्ञात हो कि आम आदमी पार्टी के तीन बड़े राजनेता सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया तथा सांसद संजय सिंह अलग अलग आरोपों में पिछले काफी समय से जेल में बंद हैं। गौरतलब बात ये है कि निचले से लेकर सर्वोच्च स्तर तक अनेकों बार जमानत की याचिका दायर करने के बावजूद भी उन्हें जमानत तक नहीं मिल पाई है।
इन परिस्थितियों में पहले से फंसी पार्टी अनियमितताओं, घपलों घोटालों के नित नए लगते आरोपों के दलदल में धंसती जा रही है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक आम आदमी पार्टी द्वारा प्रयोग के रूप में संचालित किए जा रहे मोहल्ला क्लिनिक में फर्जी स्वास्थ्य जांच करके लाखों रुपए का घोटाला करने का नया मामला भी सामने आ गया है और दिल्ली के उपराज्यपाल ने सीबीआई जांच की सिफारिश भी कर दी है।
राजनीति में शुचिता, ईमानदारी, समाजसेवा का पर्याय खुद को बताने वाले लोग और उनकी पार्टी आज तरह तरह के आर्थिक घपलों घोटालों में घिरकर अन्य राजनैतिक दलों के ही ढर्रे पर चल निकली है, बल्कि कई मायनों में तो इसकी स्थिति अन्य से मुकाबले ज्यादा खऱाब है।
सरकार, राजनैतिक दलों, नेताओं के आर्थिक कदाचार पर अंकुश लगाने के लिए उनके अपराधों की जांच और दंड की अनुशंसा में सक्षम जनलोकपाल के गठन और उद्देश्य को बता कर सत्ता में आई पार्टी और सबसे अधिक इसके मुखिया अरविंद केजरीवाल आज पूछताछ के लिए भी किसी जांच एजेंसी को सहयोग करने से बचते फिर रहे हैं। पार्टी के तीन कद्दावर नेता पहले ही भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में हैं जिन्हें अब तक निर्दोष साबित नहीं किया जा सका है।
इण्डिया अगेंस्ट करप्शन के दिनों के सभी सहयोगी और आम आदमी पार्टी के आधार रहे अन्ना हज़ारे, किरण बेदी, संतोष हेगड़े, योगेंद्र यादव तथा कुमार विश्वास जैसे तमाम साथी एक एक करके आम आदमी पार्टी का साथ छोड़ते गए और एक राजनैतिक दल के रूप में विस्तार पाने के बावजूद आम आदमी पार्टी में वैकल्पिक नेतृत्व या भविष्य के नेतृत्वकर्ताओं को तलाशने, तराशने के प्रति सर्वथा उदासीनता और उपेक्षा की नीति ही दिखाई दी। हालात ऐसे हैं कि सिर्फ कुछ ही विधायकों के पास समूचे मंत्रिमंडल का दायित्व है और अन्य सभी विधायकों को मंत्री पद के दायित्व और अनुभव से दूर ही रखने का प्रयास किया गया है।
आम आदमी पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव में पंजाब राज्य की कमान भी मिल गई किन्तु उधर से भी पार्टी को कद्दावर नेता या बड़ा विकल्प नहीं मिल पाया। उधर पंजाब में नई सरकार के मुखिया भगवंत मान भी अपने बेतुके बयानों तथा मीडिया में भरपूर प्रचार करने के अलावा कोई उल्लेखनीय योगदान अपनी पार्टी के लिए भी नहीं कर पाए हैं।
असल में आम आदमी पार्टी भी अन्य उन तमाम राजनैतिक दलों की स्थिति में ही पहुंच गई है, जो व्यक्ति या परिवार केंद्रित अन्य राजनैतिक दलों का हाल है यानी अगर किसी भी कारण से शीर्ष नेतृत्व पर आसीन व्यक्ति का विकल्प तलाशना पड़े तो वे सिर्फ अपनी पत्नी या परिवार के ही किसी सदस्य पर विशवास जताते हैं बावजूद इस तथ्य के, कि दशकों तक राजनीति और सत्ता में बने रहने के बाद भी सिर्फ अपनी पत्नी, परिवार को ही नेतृत्वकर्ता, मुख्यमंत्री, पार्टी प्रमुख बनाए रखने की विवशता ही इन तमाम व्यक्ति केंद्रीय पार्टियों के कठिन दिनों में उनके टूट जाने या बिखर जाने का कारण बन जाता है।
आज समाचारों में आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा, दिल्ली के मुख्यमंत्री, ई डी द्वारा शराब घोटाले की जांच पूछ्ताछ के लिए लगातार भेजे जा रहे सम्मन और अरविन्द केजरीवाल द्वारा उनकी अवहेलना के साथ पहले अन्य भ्रष्टाचारियों को पकडऩे/सजा देने की मांग बार उठाए जाने से उनकी छवि हास्यास्पद तो हो ही गई है और मगर सबसे बड़ा सवाल लोग इनकी राजनैतिक शुचिता बनाने, नई तरह की राजनीति करने, राजनीति को स्वच्छ करने जैसे दावों पर उठा कर आम आदमी पार्टी को कटघरे में खड़ा कर कर रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में एक के बाद एक उजागर होते घपले, घोटाले और अनियमितताओं से आम आदमी पार्टी और इनके नेताओं द्वारा, राजनैतिक शुचिता के पालन के किए जा रहे सारे दावे तार तार होते दिख रहे हैं और ये पार्टी लगातार अपना जनाधार और विश्वास खोती जा रही है।
-अजय कुमार झा