आज रंगों की होली है, जिसे वसंतोत्सव कहा जाता है अर्थात यह वसंत ऋतु का पर्व है। पर्व किसी खुशी का, उत्साह का अवसर होता है। खुशी और उत्साह इस बात का है कि नई फसल आने वाली है, जिससे सभी की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। इस पर्व में परम्परा से हंसी-ठिटोली, सुगन्धित अबीर-गुलाल, रंग एक-दूसरे पर डालकर गले मिलकर होली मिलन होता रहा है। टेसू के फूल से तैयार मिश्रण त्वचा के रोगों में लाभकारी होता था, परन्तु आज के समय में सब कुछ बदल गया है। सुगन्ध की जगह दुर्गन्ध ने ले ली है। रंगों में भी और व्यवहार में भी।
न तो पहले वाले सुगन्धित अबीर-गुलाल रहे न रंग न फूलों से बना पानी जिनसे एक दूसरे को सरोबार किया जाता था। इन सबका स्थान कीचड़ ने ले लिया है। रासायनिक रंग कीचड़ नहीं तो और क्या हैं? इन रंगों ने सबको बदरंग कर दिया है। पहल होली में ‘बुरा न मानो होली है कहने की परम्परा थी, अब तो कैसे कोई बुरा माने, स्वयं को अपमानित महसूस करे, इसी पर जोर रहता है।
पहले होली पर गले मिलकर शिकवे शिकायत दूर कर ली जाती थी, परन्तु आज तो इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। क्या ही अच्छा हो हमारी होली पहले की भांति प्यार मेल-मिलाप और सद्विचारों के रंगों से मनायी जाये।