दिउड़ी यानी देवी-बाड़ी या फिर दिव्या औड़ी! छोटानागपुर (झारखंड) अंतर्गत छोटी सी रियासत तमाड़ पांच परगना के पंचपरगनिया भाषा क्षेत्र का एक प्रमुख भाग रहा है। यहां प्राचीन कालीन एक ही प्रस्तरखण्ड से निर्मित देवी प्रतिमा व मंदिर है। इन्हें दिउड़ी कहते हैं तथा गांव का नाम भी दिउड़ी है। गांव मुख्यत: मुण्डा जनजाति लोगों का है। इस देवी मंदिर के पुजारी प्राचीन समय से मुण्डा ही रहे हैं। बाद में सनातनी शक्त ब्राह्मण पुजारी भी उनके साथ शक्त मतानुसार पूजन-अर्चन करते हैं। यहां बलि प्रथा प्रारंभ से ही है। पहले काड़ा पाड़ा काउरू, बकरा की बलि मंदिर के समक्ष गड़े हरिणा खुटा (बलिवेदी) में दी जाती थी, परंतु अब मात्र बकरों की ही बलि होती है। मन्नत मांगने में एक बकरे की और मन्नत पूरी होने पर दो बकरों की बलि दी जाती है। बाकी अक्षत, फल, सिन्दुर, नारियल आदि से भी पूजन-अर्चन होता है।
रांची, जमशेदपुर (टाटानगर) सड़क पर दिउड़ी स्थित है। देवी मंदिर सड़क से पश्चिम की ओर समीप में ही है। शोधार्थियों का कहना है कि उक्त मंदिर शासक असुर जनों का है। जो मुण्डाजनों से पूर्व छोटानागपुर (झारखंड)में शासन करते थे और अब आदिम जनजाति के रूप में विद्यमान है, जिनके संगी है- जनजाति लोहरा, करमाली, कमार, कर्मकार। उनको पराजित कर मुण्डाजनों ने यहां शासन स्थापित किया। जिनसे यह भूभाग नवीन नागवंशी शासकों के हाथों में आया और नागपुर राज्य कहलाया। मुण्डाजन इसे मुण्डा राजा द्वारा निर्मित मानते हैं। जबकि पश्चिमी यूरोपीय मानसिकता वाले जन इसे गुप्तकालीन सिद्ध करते हैं।
दिउड़ी की दुर्गा प्रतिमा अपने आप में विलक्षण है, यह सोलह भुजी हैं। मुख्य प्रतिमा के साथ जो अन्य आकृतियां उत्कीर्ण हैं, वे सब अद्भुत व विस्मयकारी हैं। विभिन्न दृष्टियों से यह प्रतिमा एकदम विरल है। एक बड़े कमल, जिसकी जड़ें और नाल भी उत्कीर्ण हैं पर कमलासना देवी विराजमान हैं। इनका दायां पांव एक अन्य छोटे कमल पर टिका है और बायां पांव घुटने से मुड़ा हुआ है और उसी बड़े कमल पर टिका है, जिस पर देवी आसीन हैं। वहां के पुजारीजनों के अनुसार प्रतिमा की दाहिनी ओर बजरंगबली हनुमान और बायीं ओर जामवन्त रीक्ष (रीछ) की प्रतिमा उत्कीर्ण हैं। ऊपरी हिस्से में दाहिनी ओर सरस्वती और बायीं और लक्ष्मी की अपेक्षाकृत छोटी-छोटी प्रतिमाएं हैं जिनका जटाजूट बंधा है किंतु दो वेणियां भी हैं जो देवी के सिर से ऊपर उठी हुई और आपस में जुड़ी हुई है, जिनके मध्य मां काली की प्रतिमा है। उससे भी ऊपर शिव की प्रतिमा है। ऊपरी हिस्से में ही दोनों और ताल-बैताल की प्रतिमाएं हैं और उनसे ऊपर दोनों पाश्र्व में शेषनाग की प्रतिमाएं हैं, जो हाथ में माला लिए उड़ती हुई परियां अधिक लगती हैं।
देवी मां भगवती की अठारह भुजाएं, बारह भुजाएं व दस भुजाएं सर्वविदित हैं, परंतु सोलह भुजाओं वाली देवी दुर्लभ ही प्राप्त होती है। रम्भकल्प में उग्र चण्डा-अठारह भुजाएं, नीललोहितकल्प में भद्रकाली-सोलह भुजाएं व बराहकल्प में-कात्यायनी-दस भुजाएं।
मूल बंगाली भाषा में प्रकाशित वृहत पुराणोक्त शारदीय दुर्गापूजा पद्धति का श्री गोरी नाथ पाठक द्वारा हिंदी में अनुदित शारदीय दुर्गा पूजा पद्धति में षोडशभुजी मां दुर्गा का स्पष्ट उल्लेख है। 1. ऊं उग्रचण्डा रक्तवर्णा पोषशभुजा, 2. ऊँ चण्डोग्रां, (चण्डोग्रां) कृष्णवर्णा षोडशभुजां, 3. ऊं चण्डनायिकां नीलवर्णा षोडशभुजां, 4. ऊँ चण्डा शुक्लवर्णा षोडशभुजा, 5. ऊँ चण्डवतीं धूम्रवर्णा षोडश भुजा, 6. ऊं.चण्डरुपां, षोडशभुजां, 7. ऊं अति चण्डिकां पाण्डिकां पाण्डुवर्णा षोडशभुजां, 8. ऊँ रुद्राचण्डा रक्तवर्णा षोडशभुजां। इसी क्रम में नौवीं दुर्गा-प्रचण्डा का उल्लेख भी आया है, जिनकी अठारह भुजाएं हैं। देवी से सम्बंधित प्राप्त उद्धरणों में नौ दुर्गाओं में एक अठारह भुजाओं वाली भद्रकाली और बाकी आठ सोलह-सोलह भुजाओं वाली रुद्रचण्डा, प्रचण्डा, चण्ड नायिका अदि नामों वाली दुर्गा देवियों के उल्लेख प्राप्त होते हैं। देवी भागवत व देवी पुराण, कालिका महापुराण में वर्णित नौ दुर्गाओं में शैल पुत्री ब्रह्मचारिणी चंद्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि महागौरी और सिद्धिदात्री तथा दस महाविद्याओं में इनके अलावा छिन्नमस्तिका (छिन्नमस्ता) में से किन्हीं से भी दिउड़ी की प्रतिमा (श्रीविग्रह) का तालमेल नहीं बैठता? सामान्यत: देवी दुर्गा का वाहन सिंह, व्याघ्र यहां अनुपस्थित है, क्योंकि यहां देवी ‘कमलासना है परंतु पुराणों में कमलासना देवी का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ ही दूर इसी प्रखण्ड में कांची नदी के किनारे दक्षिण में ‘हाराडीह में भग्न मंदिर समूह है जिनमें सोलह भुजाओं वाली एक देवी प्रतिमा है, जिन्हें दिउड़ी देवी की बहन माना जाता है परंतु दोनों में मात्र सोलह भुजाओं के अलावा अन्य कोई समानता नहीं है। झारखंड की राजधानी रांची आने वालों को जमशेदपुर-टाटानगर रोड पर तमाड़ के दिउड़ी की देवी माता के दर्शन अवश्य करना चाहिए, संभवत: उनकी बिगड़ी बन जाए।
-स्वामी गोपाल आनंद बाबा-विनायक फीचर्स
रांची, जमशेदपुर (टाटानगर) सड़क पर दिउड़ी स्थित है। देवी मंदिर सड़क से पश्चिम की ओर समीप में ही है। शोधार्थियों का कहना है कि उक्त मंदिर शासक असुर जनों का है। जो मुण्डाजनों से पूर्व छोटानागपुर (झारखंड)में शासन करते थे और अब आदिम जनजाति के रूप में विद्यमान है, जिनके संगी है- जनजाति लोहरा, करमाली, कमार, कर्मकार। उनको पराजित कर मुण्डाजनों ने यहां शासन स्थापित किया। जिनसे यह भूभाग नवीन नागवंशी शासकों के हाथों में आया और नागपुर राज्य कहलाया। मुण्डाजन इसे मुण्डा राजा द्वारा निर्मित मानते हैं। जबकि पश्चिमी यूरोपीय मानसिकता वाले जन इसे गुप्तकालीन सिद्ध करते हैं।
दिउड़ी की दुर्गा प्रतिमा अपने आप में विलक्षण है, यह सोलह भुजी हैं। मुख्य प्रतिमा के साथ जो अन्य आकृतियां उत्कीर्ण हैं, वे सब अद्भुत व विस्मयकारी हैं। विभिन्न दृष्टियों से यह प्रतिमा एकदम विरल है। एक बड़े कमल, जिसकी जड़ें और नाल भी उत्कीर्ण हैं पर कमलासना देवी विराजमान हैं। इनका दायां पांव एक अन्य छोटे कमल पर टिका है और बायां पांव घुटने से मुड़ा हुआ है और उसी बड़े कमल पर टिका है, जिस पर देवी आसीन हैं। वहां के पुजारीजनों के अनुसार प्रतिमा की दाहिनी ओर बजरंगबली हनुमान और बायीं ओर जामवन्त रीक्ष (रीछ) की प्रतिमा उत्कीर्ण हैं। ऊपरी हिस्से में दाहिनी ओर सरस्वती और बायीं और लक्ष्मी की अपेक्षाकृत छोटी-छोटी प्रतिमाएं हैं जिनका जटाजूट बंधा है किंतु दो वेणियां भी हैं जो देवी के सिर से ऊपर उठी हुई और आपस में जुड़ी हुई है, जिनके मध्य मां काली की प्रतिमा है। उससे भी ऊपर शिव की प्रतिमा है। ऊपरी हिस्से में ही दोनों और ताल-बैताल की प्रतिमाएं हैं और उनसे ऊपर दोनों पाश्र्व में शेषनाग की प्रतिमाएं हैं, जो हाथ में माला लिए उड़ती हुई परियां अधिक लगती हैं।
देवी मां भगवती की अठारह भुजाएं, बारह भुजाएं व दस भुजाएं सर्वविदित हैं, परंतु सोलह भुजाओं वाली देवी दुर्लभ ही प्राप्त होती है। रम्भकल्प में उग्र चण्डा-अठारह भुजाएं, नीललोहितकल्प में भद्रकाली-सोलह भुजाएं व बराहकल्प में-कात्यायनी-दस भुजाएं।
मूल बंगाली भाषा में प्रकाशित वृहत पुराणोक्त शारदीय दुर्गापूजा पद्धति का श्री गोरी नाथ पाठक द्वारा हिंदी में अनुदित शारदीय दुर्गा पूजा पद्धति में षोडशभुजी मां दुर्गा का स्पष्ट उल्लेख है। 1. ऊं उग्रचण्डा रक्तवर्णा पोषशभुजा, 2. ऊँ चण्डोग्रां, (चण्डोग्रां) कृष्णवर्णा षोडशभुजां, 3. ऊं चण्डनायिकां नीलवर्णा षोडशभुजां, 4. ऊँ चण्डा शुक्लवर्णा षोडशभुजा, 5. ऊँ चण्डवतीं धूम्रवर्णा षोडश भुजा, 6. ऊं.चण्डरुपां, षोडशभुजां, 7. ऊं अति चण्डिकां पाण्डिकां पाण्डुवर्णा षोडशभुजां, 8. ऊँ रुद्राचण्डा रक्तवर्णा षोडशभुजां। इसी क्रम में नौवीं दुर्गा-प्रचण्डा का उल्लेख भी आया है, जिनकी अठारह भुजाएं हैं। देवी से सम्बंधित प्राप्त उद्धरणों में नौ दुर्गाओं में एक अठारह भुजाओं वाली भद्रकाली और बाकी आठ सोलह-सोलह भुजाओं वाली रुद्रचण्डा, प्रचण्डा, चण्ड नायिका अदि नामों वाली दुर्गा देवियों के उल्लेख प्राप्त होते हैं। देवी भागवत व देवी पुराण, कालिका महापुराण में वर्णित नौ दुर्गाओं में शैल पुत्री ब्रह्मचारिणी चंद्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि महागौरी और सिद्धिदात्री तथा दस महाविद्याओं में इनके अलावा छिन्नमस्तिका (छिन्नमस्ता) में से किन्हीं से भी दिउड़ी की प्रतिमा (श्रीविग्रह) का तालमेल नहीं बैठता? सामान्यत: देवी दुर्गा का वाहन सिंह, व्याघ्र यहां अनुपस्थित है, क्योंकि यहां देवी ‘कमलासना है परंतु पुराणों में कमलासना देवी का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ ही दूर इसी प्रखण्ड में कांची नदी के किनारे दक्षिण में ‘हाराडीह में भग्न मंदिर समूह है जिनमें सोलह भुजाओं वाली एक देवी प्रतिमा है, जिन्हें दिउड़ी देवी की बहन माना जाता है परंतु दोनों में मात्र सोलह भुजाओं के अलावा अन्य कोई समानता नहीं है। झारखंड की राजधानी रांची आने वालों को जमशेदपुर-टाटानगर रोड पर तमाड़ के दिउड़ी की देवी माता के दर्शन अवश्य करना चाहिए, संभवत: उनकी बिगड़ी बन जाए।
-स्वामी गोपाल आनंद बाबा-विनायक फीचर्स