चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तदनुसार 9 अप्रैल 2024 से नये विक्रमी सवतसर 2081 का आरम्भ हो रहा है, साथ ही सृष्टि संवत एक अरब छियानवे करोड़ आठ लाख तिरपन हजार एक सौ पच्चीस वां भी इसी दिवस पर आरम्भ हो रहा है।
इसकी काल गणना ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि के निर्माण की तिथि से की जाती है। इसलिए इसे सृष्टि की जयंती भी माना जाता है। आज के युग में नव वर्ष का उत्सव एक जनवरी को मनाया जाता है, किन्तु इस दिन न प्रकृत्ति में कोई परिवर्तन होता है न ऋतु में कोई बदलाव। इस तिथि में कुछ नया होता ही नहीं।
भारतीय ज्योतिष में नये वर्ष को सृष्टि संवत दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन से बसंत नवरात्र भी आरम्भ होते हैं, जिसमें शक्ति की आराधना की जाती है। शक्ति का मूल स्रोत प्रकृत्ति है। हम सभी का जीवन प्रकृत्ति से ही जुड़ा है। इसमें किसी प्रकार की विकृति आती है तो शरीर और मन में रोग पनपते हैं। इसीलिए हमारे ऋषियों ने नवरात्रों में व्रत उपवास कर हवन, यज्ञ करने का विधान बनाया था ताकि शरीर और मन की शुद्धि हो साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा हो।
प्रकृत्ति का पर्यावरण शुद्ध और पवित्र रहेगा तो जीवन भी संयमित रह पायेगा और हम स्वस्थ शरीर और पवित्र मन के साथ सुख से रह पायेंगे।