बुद्धि मनुष्य और पशु के मध्य की लक्ष्मण रेखा है। बुद्धि तत्व ही मनुष्य को पशुत्व से निकालकर मनुष्यत्व प्रदान करता है। बुद्धिहीन मनुष्य तो पशु के समान है, पशु तुल्य है।
मनुष्य ज्ञान प्राप्ति का प्रयत्न जीवन भर करता है। ज्ञान की प्राप्ति के लिए बुद्धि और आनन्द की प्राप्ति के लिए ज्ञान का होना अनिवार्य है। बुद्धि होने पर व्यक्ति अपने लिए कल्याण की सोचता है, जबकि ज्ञानी व्यक्ति सद्बुद्धि के द्वारा समाज, राष्ट्र और साथ ही अपना भी कल्याण कर लेता है। इसलिए निष्काम और निर्मल मन से प्रभु की उपासना कर सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करता है।
परोपकार और शुभ कर्म की भावना केवल सद्बुद्धि द्वारा ही आती है और यही उसका लक्षण है। हमारा ज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ धन है, जिसे न कोई छीन सकता है न ही उसमें कोई भागीदारी मांग सकता है। इसलिए प्रभु से जब भी किसी वस्तु की याचना करे तो सद्बुद्धि की करे जिसके द्वारा सद्ज्ञान की प्राप्ति हो सके ताकि हम सर्व कल्याणकारी और शुभ कर्मों में प्रवृत रहे।