मानव योनि को कर्म योनि कहा गया है। पशु, पक्षी, जलचर तथा अन्य जीव सभी भोग योनि में हैं। वे कर्म कुछ नहीं करते मात्र भोगते हैं, जबकि मनुष्य कर्म भी करता है और पिछले जन्मों के कर्मों का फल भी भोगता है।
यह संसार कर्म क्षेत्र है। हमें मानव योनि प्राप्त हुई है कर्म तो हम करेंगे ही। कर्म शुभ करे अथवा अशुभ करें, पाप कर्म करे अथवा पुण्य कर्म करे यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है।
तुलसीदास जी ने कहा है ‘बड़े भाग्य से मानुष तन पाकर हमें अच्छे कर्म ही करने चाहिए। वेदों में कहा गया है ‘सौ वर्ष तक कर्म करते हुए जीने की कामना करें जीवन के अन्तिम भाग तक आदमी को कर्मरत रहना चाहिए। जीवन कर्म का दूसरा नाम है। मनुष्य का कर्तव्य है कर्म करना उस कर्म का फल ईश्वाधीन है।
कर्म करते हुए परमात्मा की भक्ति का आश्रय लेना चाहिए। प्रभु नाम रूपी जहाज में यदि हम सवार हो गये तो संसार सागर से पार हो जायेंगे और बार-बार जन्म लेने से मुक्ति भी मिल जायेगी।