पुरूषार्थ करना पुरूष का प्रथम कर्तव्य है। पुरूषार्थ नहीं करोगे तो पुरूष कहलाने के अधिकारी भी नहीं रहोगे। पुरूषार्थी व्यक्ति स्वस्थ रहता है, आनन्दित रहता है, चैन की नींद सोता है। जीवन में सुख-शान्ति और आनन्द के लिए शरीर का स्वस्थ रहना जरूरी है।
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा निवास करती है, जहां आप कुछ नहीं कर सकते, वहां एक चीज अवश्य कीजिए प्रयास। प्रयास करते रहने से ही सफलता का मार्ग मिलता है। सम्भवत: लोगों को यह ज्ञात न हो कि प्रभु के स्मरण मात्र से समस्त संतापों का शमन होता है। यह प्रकृत्ति की सबसे सरल और सहज प्रक्रिया है। स्मरण करते रहने से ही अनेक शक्तियों की सिद्धि होती है।
बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक स्मरण शक्ति का ही तो खेल है, जो प्रकृत्ति द्वारा स्वत: प्रदत्त है जिसे अपने प्रयासों से बढ़ाया जा सकता है। व्यक्ति के जीवन में कुछ विशेष अवसर आत्म चिंतन के लिए आते हैं। उन अवसरों का सदुपयोग करते हुए यह सोचे कि हम कोई ऐसा कार्य तो नहीं कर रहे हैं, जो धर्म की कसौटी पर खरा न उतरता हो, किसी दूसरे का अहित तो नहीं हो रहा।