मेरठ। हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस पर इन जवानों के शौर्य को नमन किया जाता है। अपनों को खोने वाले परिवारों का सीना अब भी गर्व से चौड़ा हो जाता है। शहीदों के परिवारों का ऋण ये देश कभी नहीं चुका पाएगा।
योगेंद्र यादव ने टाइगर हिल पर झेली दुश्मन की गोलियां
कारगिल युद्ध में टाइगर हिल पर पाकिस्तानी सेना ने सबसे ज्यादा नुकसान किया। दुश्मन 18 हजार फीट की ऊंचाई पर और हमारे जवान नीचे। दुश्मन पत्थर भी फेंकते तो गोली की तरह लगता। उधर से मशीनगन चल रही थी। कई अफसर-जवान शहीद हो गए थे। तब मेरठ के योगेंद्र यादव की बटालियन को टास्क दिया गया।
पांच जुलाई 1999 की शाम को दुश्मन की जवाबी गोलीबारी में योगेंद्र सिंह यादव शहीद हो गए। उनकी वीरता के लिए उन्हें वीर चक्र मेडल दिया गया।
दुश्मनों को यशवीर सिंह ने किया नेस्तानाबूद
रोहटा रोड पर रहने वाली वीर नारी मुनेश देवी बताती हैं कि उनके पति हवलदार यशवीर सिंह की बटालियन को तोलोलिंग का टास्क दिया गया था। 12 जून को टू-राजपूताना राइफल ने मेजर विवेक गुप्ता के नेतृत्व में 90 जवानों ने इस प्वाइंट पर हमला बोल दिया। प्वाइंट 4950 पर कब्जे के लिए भीषण युद्ध हुआ।
तिरंगा फहराकर शहीद हुए मेजर मनोज तलवार
मवाना रोड स्थित डिफेंस काॅलोनी ए-34 निवासी मेजर मनोज तलवार की फरवरी 1999 में फिरोजपुर पंजाब में तैनाती हुई, लेकिन वह देश के लिए कुछ करना चाहते थे। उन्होंने सियाचिन में नियुक्ति मांगी। कारगिल में युद्ध हुआ तो उनकी बटालियन को टुरटुक में भेजा गया।
13 जून को उन्होंने कारगिल सेक्टर टुरटुक में तिरंगा फहरा दिया। इसी बीच दुश्मन की तोप के गोले के हमले में वह शहीद हो गए। उनके पिता रिटायर्ड कैप्टन पीएस तलवार का भी कुछ दिन पहले निधन हो गया था।
फतह के बाद शहीद हुए सत्यपाल सिंह
मूलरूप से गढ़मुक्तेश्वर के लुहारी गांव निवासी लांसनायक सत्यपाल सिंह का जनवरी 1999 में जम्मू तबादला हुआ था। इसी बीच कारगिल की जंग शुरू हो गई।
उनकी बटालियन सेकेंड राजपूताना राइफल्स को कारगिल पहुंचने का आदेश मिला। तोलोलिंग जीतने के बाद 28 जून को दुश्मनों से लड़ते हुए वह द्रास सेक्टर में शहीद हो गए। तब बड़ा बेटा पुलकित साढ़े तीन साल और बेटी दिव्या ढाई साल की थी।