मेरठ। कामकाजी मुस्लिम महिलाएं समाज की रूढ़िवादिता को चुनौती दें। जब तक वो आगे नहीं आएंगी समाज में फैली रूढ़िवादिता खत्म नहीं हो सकती। ये कहना है जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की अंतर्राष्ट्रीय संबंध की जानकारी रखने वाली रेशम फातिमा का। जिन्होंने आज ऊर्दू विभाग में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लिया। कार्यक्रम का विषय था मुस्लिम समाज में रूढ़िवादिता और कामकाजी मुस्लिम महिलाएं।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को केवल घरेलू कामों तक ही सीमित रखा जाता है। न केवल गलत है बल्कि इतिहास में उनके द्वारा किए गए गहन योगदान को भी नजरअंदाज करती है। उन्होेने बताया कि ऐसी एक अनुकरणीय हस्ती हैं फातिमा अल-फ़िहरी। जिनकी विरासत इस रूढ़िवादिता को तोड़ती है और शिक्षा और सामाजिक उन्नति में मुस्लिम महिलाओं द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिकाओं को दर्शाती है।
उन्होंने बताया कि फातिमा अल-फ़िहरी, एक दूरदर्शी मुस्लिम महिला थी। जिन्होंने 859 ई. में मोरक्को के फ़ेज़ में अल-क़रावियिन विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। इस विश्वविद्यालय को यूनेस्को और गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा दुनिया में सबसे पुराना लगातार संचालित डिग्री देने वाला विश्वविद्यालय माना जाता है। 9वीं शताब्दी में एक महिला द्वारा इस विश्वविद्यालय की स्थापना इस्लामी दुनिया में महिलाओं द्वारा निभाई गई प्रमुख और अग्रणी भूमिका को उजागर करती है। उन्होंने बताया कि फातिमा और मरियम ने अपनी विरासत का उपयोग अपने समुदाय को लाभ पहुँचाने और शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए किया। यह निर्णय सामाजिक और शैक्षिक विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है जो उस समय की मुस्लिम महिलाओं की घरेलू भूमिकाओं तक सीमित गलत धारणा को खारिज करता है। उन्होंने बताया कि मुस्लिम महिलाओं की भूमिका कभी भी घर तक ही सीमित नहीं रही है।
वे इस्लामी दुनिया और उससे परे की बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत को आकार देने में महत्वपूर्ण रही हैं। आज की करोड़ों मुस्लिम महिलाओं के लिए पितृसत्ता के बंधन से बाहर निकलने की प्रेरणा के रूप में पेश कर सकते हैं। इस दौरान रजिया खातून, फिरदौस, जुबैदा, जरीना, शकीला खातून, शबनम खान, जुबैनुस अंसारी आदि उपस्थित रहीं।