उड़ीसा के सागर तट के समीप स्थित कोणार्क का सूर्य मंदिर सूर्य रथ के रूप में निर्मित है और भारतीय संस्कृति, स्थापत्य कला तथा आस्था का बेजोड़ प्रतीक है। इस विश्व धरोहर को अपने कलात्मक सौंदर्य और विशालता के कारण एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया गया है।
इतिहास और किंवदंतियां: बारहवीं सदी के दौरान गंगवंश के राजा नरसिंह देव के शासन में, हजार से अधिक शिल्पकारों और श्रमिकों ने इस विशाल मंदिर का निर्माण किया। ऐसा माना जाता है कि राजा श्रीकृष्ण के पुत्र सांबा को कुष्ठ रोग से छुटकारा पाने के लिए सूर्य उपासना की विधि बताई गई थी, जिसके बाद उसने सूर्य के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करने के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया।
मंदिर की वास्तुकला: यह मंदिर काले और भूरे ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित है और इसे सूर्य रथ के रूप में परिकल्पित किया गया था। चौबीस चक्कों पर स्थित इस रथ को सात अश्वों द्वारा खींचा जा रहा है, और सूर्य भगवान विराजमान हैं। कहा जाता है कि मंदिर के गर्भगृह में सूर्यमूर्ति को चुंबकीय आकर्षण से लटकाया गया था, लेकिन समय के साथ यह टूटकर गिर गई।
संरक्षण और रखरखाव: मूर्तिभंजक आक्रमणकारियों के अलावा, सागर की लवणयुक्त हवा और पानी ने भी इस कलात्मक निर्माण को काफी नुकसान पहुंचाया है। निकट से प्रवाहित नदी चंद्रभागा ने भी मिट्टी का कटाव किया है। भारतीय पुरातत्व विभाग और इंजीनियरों ने मुख्य मंदिर को सुरक्षित रखने के लिए दरवाजे को बंद लोहे की छड़ से रखा है। टूटे प्रस्तर खंडों को एक संग्रहालय में रखा गया है।
मूर्तियों की सुंदरता: कोणार्क मंदिर की दीवारों और प्रस्तर खंडों पर अनेक कलापूर्ण मूर्तियां हैं। कई प्रतिमाएं मैथुनरत मुद्रा में हैं, जो खजुराहों की शिल्पकला से समानता रखती हैं। गायकों, कलाकारों, सैनिकों और नायिकाओं की मूर्तियां भी यहां बनाई गई हैं, जो दर्शकों को आकर्षित करती हैं।
पर्यटन और पहुंच: कोणार्क मंदिर भारत के सात आश्चर्यजनक धरोहरों में से एक है। यह कोलकाता, विशाखापटनम रेल लाइन पर स्थित भुवनेश्वर से जुड़ा है, जहां हवाई अड्डा भी है। दिल्ली-पुरी रेल लाइन से भी जुड़ा है। भुवनेश्वर और पुरी से कोणार्क मंदिर तक पक्की सड़क से एक घंटे में बस या मोटर कार द्वारा पहुंचा जा सकता है। इसे भारत और राज्य सरकार ने एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया है।