अधिकांश लोगों का कहना है कि जो प्रारब्ध में लिखा है वह तो हमें मिलना ही है, उसके अनुसार प्राप्त होगा न उससे कम और न उससे अधिक इसलिए अधिक हाथ-पांव मारने से क्या लाभ। यह बताने की अथवा उपदेश करने की आवश्यकता ही नहीं कि प्रारब्ध मनुष्य के किये हुए कर्मों का फल है। आज वही मिलेगा जैसा अपने पूर्व कर्मों में किया है और जो आज करेंगे वह आगे के प्रारब्ध की रचना करेगा।
किन्तु वह भी पुरूषार्थ करने से ही मिलेगा। मान लो किसी ने आपको एक लाख रूपये का चैक दिया है और उसे अपनी जेब में रखकर बिस्तर में लेट जाये कि मैं तो लखपति हो गया तो क्या आप लखपति बन गये। आपको उस एक लाख को प्राप्त करने के लिए भी पुरूषार्थ करना होगा। आपको बैंक जाना होगा, अपना खाता खुलवाना होगा। किसी खातेदार से स्वयं को प्रमाणित कराना होगा, तब आप उस चैक को अपने खाते में जमा करोगे।
यह सब कुछ करने के पश्चात ही वह लाख रूपया आपको मिल पायेगा। यदि यह सब न किया जाये तो आप लखपति नहीं मात्र एक कागज के छोटे से टुकड़े के ही स्वामी हैं। तात्पर्य यह कि प्रारब्ध को भुनाने के लिए भी पुरूषार्थ करना अनिवार्य है।