Monday, December 23, 2024

ईश्वर का अनुपम उपहार हैं मध्यप्रदेश की नदियां

नर्मदा, बेतवा, चम्बल, सोन, कालीसिंध, पार्वती, ताप्ती, माही और ऐसी कई नदियाँ है जो मध्य प्रदेश की पावन भूमि से निकली हैं और दूसरे प्रदेशों में जाकर वहाँ की प्रकृति को हरा-भरा कर रही हैं। ऐसा नहीं है कि ये जहाँ से निकली हैं, वहाँ हरा-भरा नहीं करतीं,मध्यप्रदेश की ये पुण्यसलिलाएं तो जहां जाती हैं वहीं अपनी पवित्र पावन जलधार से सबको संतृप्त और संतुष्ट करती हैं। मध्य प्रदेश को समृद्ध बनाने वाली इन नदियों में प्रात:स्मरणीय नर्मदाजी तो मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कहलाती हैं। इसी तरह चंबल नदी महू के पास जानापाव से निकली है। जानापाव ऋषि परशुराम जी की जन्म स्थली है। यहाँ से चंबल नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। जब चंबल यहाँ से चलती है, तो वर्षा काल में तो यह नदी जल से भरी रहती है, परंतु जैसे ही गर्मी का मौसम आता है, पूरी तरह से सूख जाती है, फिर इसमें पानी के दर्शन होते हैं औद्योगिक नगरी नागदा में, जहाँ पर इसके ऊपर एक बाँध बना हुआ है और उसमें वर्षा का पानी रोक लिया जाता है,जो पूरे वर्षभर लबालब रहता है। नागदा के बाद ही, यह नदी अपने पूर्ण स्वरूप में दर्शन देती है। नागदा से आगे इस पर गाँधी सागर में बहुत बड़ा बाँध बना है, जो आजादी के बाद बने हुए बाँधों में सबसे पहले बना था। इससे आगे राजस्थान के रावतभाटा में और कोटा में भी इस पर बाँध बने हुए हैं, उसके बाद आगे चलकर यह उत्तर प्रदेश में इटावा से आगे और ओरैया के पहले, अपने आपको यमुना नदी में विलीन कर देती है। मध्य प्रदेश में कालीसिंध, गंभीर, पार्वती, क्षिप्रा और अन्य अनेक छोटी-बड़ी सहायक नदियाँ हैं जो इसे वर्षभर जल से भरपूर रखती हैं।
इस नदी का सौभाग्य कहें या ईश्वर की कृपा! इसके किनारे पर ना तो ज्यादा बड़ा कोई शहर है और ना ही कोई बड़ा धर्म और आस्था का केंद्र और इसी कारण यह निर्मल स्वच्छ धारा के रूप में बह रही है, कोई शहर या धार्मिक स्थल किसी नदी के किनारे होने के कारण वहाँ शहर की गंदगी का और वर्षभर लगने वाले धार्मिक मेले और आस्था का जमघट लगा रहता है फलस्वरूप नदियों के तट पर प्लास्टिक और  पुराने कपड़ों के ढेर लग जाते हैं और कई तरह की गंदगियाँ इकटठी होती जाती हैं। परंतु चंबल अभी भी इससे बची हुई है। मैं इसके तटों पर घूमा और रहा हूँ । मुझे इसे करीब से देखने का सौभाग्य मिला है। मैंने इसके सौन्दर्य का रस-पान किया है, इसमें पलने वाले पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं की स्वच्छंदता को महसूस किया है।
जितना मैंने देखा है, उस सम्पूर्ण क्षेत्र में यह नदी ईश्वर की इन संतानों को अपने यहाँ पाल-पोस रही है और स्वच्छ, सुरक्षित खाद्य से भरपूर वातावरण मुहैया करवा रही है। यह भी सच है कि नदियाँ गाती हैं, उसे सुनने वाले चाहिए। चंबल में भी कल-कल बहते पानी का संगीत सुन सकते हैं, झरनों की गर्जन-तर्जन है, पक्षियों का कलरव रुपी सुर और ताल है। इनके मनभावन गीत को सुनने के लिए,बस हमें कान चाहिए। यह अपने आपमें हमारे लिए बहुत बड़ी बात है कि ईश्वर का यह अनुपम उपहार, चंबल नदी मध्यप्रदेश में बह रही है और प्रकृति को संतुलित करने में अपना योगदान दे रही है।
पैंतीस-चालीस हजार वर्ष पूर्व मानव सभ्यता इसके किनारों पर अपना जीवन यापन करती थी, यह सबूत है यहां पर मिल रहे गुफाओं मे बने शैलचित्रों से।इससे प्रतीत होता है कि यहां बहुत ही संपन्न और उन्नतिशील सभ्यता रही होगी।
वर्तमान समय में भी मानव जीवन के लिए यह अपना अमूल्य योगदान दे रही है। मध्यप्रदेश के लिए तो यह वरदान है ही, साथ ही राजस्थान को भी हरा भरा कर रही है, क्योंकि राजस्थान जैसे सूखे प्रदेश में यह सबसे बड़ी जल संरचना है। मध्यप्रदेश और राजस्थान के उस सूखे और बीहड़ी क्षेत्र, जहाँ केवल बीहड़ ही बीहड़ है वहाँ यह नदी अपना स्तन-पान करवा रही है और गेहूं-सरसों जैसी उपज के लहलहाते कई किलोमीटर लंबे खेत इसके किनारे देखे जा सकते हैं। इसके आसपास अधिकतर जो वन क्षेत्र है, वह कँटीली झाडिय़ों का है क्योंकि इसके तटों पर दूर तक बीहड़ और पथरीले तट हैं फिर भी यह नदी जितना अधिक से अधिक योगदान मानव कल्याण में और प्रकृति को सहेजने में दे सकती है, दे रही है।
पेड-पौधे तो ज्यादातर इसके किनारे पर कंटीली प्रजातियों वाले ही है,जिसमें बबूल बहुतायत में है,जलीय वनस्पति का मुझे अभी कुछ समझ में नहीं आता है।
इसके तटों पर रेत उत्खनन और अवैध शिकार धड़ल्ले से होता है।इसका एक तट राजस्थान में और एक तट मध्यप्रदेश में लगता है, अत: इस बात का पूरा फायदा अवैध कारोबारियों द्वारा उठाया जाता है। सरकारी तंत्र भी उतना समुचित और साधन-सम्पन्न नहीं है कि रेत माफिया का सामना कर सके।
सुझाव यह है कि इसमें बीच बीच में इको-टूरिज्म प्रारम्भ करना चाहिए इससे राजस्व की प्राप्ति भी होगी और अवैध कारोबार पर नकेल भी लगेगी। अभी केवल राजस्थान के पाली में और मध्यप्रदेश के मुरैना के पास सफारी चल रही है। इसी तरह की सफारी चार-छ: जगह और प्रारंभ की जा सकती है।
मेरी व्यक्तिगत राय है कि जब भी कभी किसी भी मंच पर गंगा, यमुना, नर्मदा की बात हो तो उसमे चंबल को भी अवश्य शामिल किया जाए।
(श्रीकांत कलमकर-विनायक फीचर्स)

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