प्रत्येक दशहरे पर रावण आदि के पुतलों का वध और दहन करके हम विजयदशमी पर्व की औपचारिकता पूरी कर देते हैं। क्या इतना मात्र पर्याप्त है? वह एक रावण तो त्रेता युग में हुआ, परन्तु आज कलयुग में तो घर-घर रावण पैदा हो गये हैं। आज के रावणों से त्रेता का रावण हजारों गुणा चरित्रवान था, तभी तो उसने सीता माता को स्पर्श तक नहीं किया। उस रावण मे तो दोष केवल अहंकार का था, परन्तु आज के रावणों में तो दोष ही दोष भरे पड़े हैं। कलयुग के रावणों में चरित्रहीनता हावी है, तभी तो महिलाओं और छोटी-छोटी कन्याओं की अस्मत चौराहों, बसों और कारों में लूटी जाती रही है। नारी की लाज पर प्रहार करके उन्हें नंगा किया जाता रहा है। आज का रावण निरकुंश हो गया है। इन कलयुगी रावणों ने तो राष्ट्र की आधी पूंजी को चट कर लिया है। क्या नेता, क्या अभिनेता, शीर्ष अधिकारी, कर्मचारी, कारपोरेट घराने और आम आदमी तक भ्रष्टाचार में लिप्त है। इनके विचार दूषित हो गये हैं। नैतिक पतन हो गया है। इसलिए वध तो इन कलयुगी रावणों का होना चाहिए, इन्हें सन्मार्गी बनाया जाना चाहिए। भारत-माता आज के रावणों से मुक्ति चाहती है। इसका उपाय एक ही है। भगवान राम के आदर्शों पर चला जाये उन्हें आत्मसात किया जाये अन्यथा ये रावण राष्ट्र की अस्मिता से खिलवाड़ करते रहेंगे। प्रजा को आपस में लड़ाते रहेंगे।