केवल एक विषय, पदार्थ अथवा बिन्दू पर चित्त को स्थिर करना एकाग्रता है। एकाग्र व्यक्ति ही अपने सारे क्रिया कलाप तथा दिनचर्या को सुव्यवस्थित कर सकता है। एकाग्रता बिना ध्यान के सम्भव नहीं और ध्यान के लिए मन का निर्विषयी होना आवश्यक है, क्योंकि मन एक बार में केवल एक विषय पर ही केन्द्रित हो सकता है।
उसका अन्य विषयों से हटना आवश्यक है। एकाग्रता केवल आध्यात्मिक कार्यों में ही नहीं, लौकिक कार्यों में भी आवश्यक है, उनमें तो बिना एकाग्रता के उपलब्धि होना सम्भव ही नहीं। एकाग्रता की शत्रु चंचलता है। इस पर नियंत्रण करना कठिन तो अवश्य है, किन्तु शनै-शनै अभ्यास के द्वारा सम्भव भी है।
मन की चंचलता बार-बार साधक को साधना तथा स्वाध्याय से भटकाती है। ऐसे में एकाग्रता के बल पर ही वह अपने चित्त को सूक्ष्य विषयों पर लम्बे समय तक केन्द्रित रख सकता है और चाहे क्षेत्र लौकिक कार्यों का हो अथवा आध्यात्मिकता का हो वह सफलता निश्चित प्राप्त कर लेता है। इसलिए प्रत्येक कार्य में एकाग्रता महत्वपूर्ण है।