Tuesday, November 26, 2024

संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द शामिल किए जाने के खिलाफ याचिकाएं खारिज

नयी दिल्ली- उच्चतम न्यायालय ने आपातकाल के दौरान भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को शामिल किये जाने को चुनौती देने वाली याचिकाएं सोमवार को खारिज कर दीं।

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मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि संबंधित रिट याचिकाओं पर आगे विचार-विमर्श और निर्णय की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने कहा, “हमने स्पष्ट किया है कि इतने वर्षों के बाद प्रक्रिया को इस तरह से निरस्त नहीं किया जा सकता।” पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ क्या है और इसे कैसे लागू किया जाता है, यह सरकार की नीति पर निर्भर करेगा।

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भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिकाएँ दायर की थीं। शीर्ष अदालत ने 22 नवंबर को कहा था कि संविधान में 1976 में किए गए संशोधन में प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्दों को शामिल किया गया था, जिसकी न्यायिक समीक्षा की गई थी और वह यह नहीं कह सकता कि आपातकाल के दौरान संसद ने जो कुछ भी किया, वह सब निरर्थक था।

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पीठ ने पहले भी कहा था कि ऐसे कई फैसले हैं, जिनमें शीर्ष अदालत ने कहा है कि धर्मनिरपेक्षता मूल ढांचे का हिस्सा है और वास्तव में इसे मूल ढांचे के रूप में अपरिवर्तनीय हिस्से का दर्जा दिया गया है।

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उल्लेखनीय है कि भारत में आपातकाल की घोषणा दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को की थी, जो 21 मार्च 1977 तक लागू रही। केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार द्वारा 1976 में किए गए 42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्द शामिल किए गए थे।

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संशोधन ने प्रस्तावना में भारत के वर्णन को ‘संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य’ से बदलकर ‘संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ कर दिया।

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