जीवात्मा अपने कर्मों के अनुसार नाना योनियों में भ्रमण कर जब मानव योनि प्राप्त करता है तो उसे एक अवसर प्राप्त होता है कि वह कोई उपाय करे, जिससे आवागमन से छुटकारा मिले मोक्ष की प्राप्ति हो। यह अवसर किसी अन्य योनि में प्राप्त नहीं होता। सबसे सरल उपाय है कि वह सांसारिक कार्य सम्पन्न करता हुआ प्रभु का स्मरण करता रहे।
स्मरण करते रहने का तात्पर्य यह नहीं कि वह मात्र नाम जपता रहे। मात्र इससे कुछ होने वाला नहीं है, बल्कि प्रभु के गुणों को धारण करने का प्रयास उसका स्मरण है। आरम्भ में तो वह उसका नाम जप ही करेगा, उसका स्मरण करता रहेगा, किन्तु शनै-शनै स्मरण करते रहने से भक्त में एक महाशक्ति का उदय होगा, जो उसे महान कार्य करने को प्रेरित करती रहेगी। इससे मुक्ति का मार्ग सुगम हो जायेगा।
संसार के जितने महापुरूषों ने मुक्ति के महान लक्ष्य को प्राप्त किया वे अवश्य ही प्रभु के सन्निकट रहकर आगे बढ़ते गये, क्योंकि यह महाशक्ति व्यक्ति को कभी पाप कर्म करने ही नहीं देती। शुभ कर्मों को करने की सदैव प्रेरणा मिलती रहेगी। प्रभु की निकटता प्राप्त उन्हीं को होती है,जो पाप कर्मों से दूर रहते हैं।