मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अल्प शक्तिमान होने से अपने सब कार्य अकेले पूरा नहीं कर पाता। उसे दूसरे का सहयोग लेना पड़ता है। इसलिए जहां हमसे किसी को सहयोग अपेक्षित हो वहां हमें प्रसन्नतापूर्वक दूसरों को सहयोग देना चाहिए। पशु-पक्षी भी एक-दूसरे का सहयोग करते हैं फिर मनुष्य तो उनसे अधिक बुद्धिमान और साधन सम्पन्न प्राणी है उसे तो दूसरों की सहायता अवश्य करनी चाहिए।
सामान्य स्थिति में भी एक-दूसरे का सहयोग करें और यदि किसी पर आपत्तिकाल हो तो ऐसे में तो और भी अधिक तत्परता से ऐसा करना चाहिए। शास्त्र कहते हैं कि जो व्यक्ति आपत्ति काल में दूसरे मनुष्य की सहायता नहीं करता वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी ही नहीं। मनुष्य वह है जो दूसरे के सुख-दुख को भी अपना सुख-दुख माने।
सहायता लेने और सहायता करने के कोई विशेष नियम नहीं है फिर यदि आपको किसी की सहायता की आवश्यकता पड़ जाये तो जिससे सहायता की अपेक्षा कर रहे हो उनकी क्षमताओं की सीमा का आकलन अवश्य कर लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि वह भी आप जैसी परिस्थिति में ही हो, यदि कोई शारीरिक सहायता अपेक्षित हो तो यह ध्यान रहे कि जिनसे आप निवेदन कर रहे हैं वह आपसे वरिष्ठ न हो, कनिष्ठ हो। यह शिष्टाचार है।