संसार में विभिन्न योनियां है। पशु, पक्षी, कीट पतंगे और सबमं श्रेष्ठ मनुष्य योनि। आत्माओं को भिन्न-भिन्न योनि परमात्मा की न्यायपूर्ण व्यवस्था जो कर्म भोग के आधार पर है प्राप्त होती रहती है। जो व्यक्ति सेवा, दान, दया, परोपकार, सभ्यता, नम्रता और सत्यपूर्ण व्यवहार आदि शुभ कर्म करता है ईश्वर उसे अच्छा फल अर्थात सुख देता है अच्छी योनि प्राप्त करता है और जो व्यक्ति झूठ, झल, कपट, धोखा, अन्याय, चोरी, रिश्वतखोरी, स्मलिंग आदि अशुभ कर्म करता है उसे ईश्वर बुरा फल देता है।
उसे नाना प्रकार के कष्ट प्राप्त होते हैं यदि उसके किन्हीं शुभ कर्मों के कारण मानव योनि प्राप्त हो भी गई हो तो उसे इस योनि में भी भांति-भांति के कष्ट प्राप्त होंगे। यदि किसी व्यक्ति को आप सुखी और सम्मानित जीवन व्यतीत करते देखते हैं तो निश्चय ही कहा जायेगा कि इस व्यक्ति ने पूर्व जन्मों में बहुत ही अच्छे कर्म किये हैं।
यदि कोई कष्ट भोग रहा है तो वह स्वयं ही कह देगा कि कोई बहुत ही बुरे कर्म मैंने अपने पिछले जन्मों में किये होंगे, जिनके कारण मैं दुख भोग रहा हूं, इसलिए जितनी आयु शेष है शुभ और केवल शुभ कर्म ही करे, भूले से भी पाप कर्म न हो ताकि परलोक का जीवन अच्छा प्राप्त हो।