नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। वे न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था के सुधारों के शिल्पकार थे, बल्कि शायरी के भी बड़े शौकीन थे। संसद में उनकी भाषण शैली में शायरी का खास स्थान था। डॉ. सिंह कम बोलने के लिए जाने जाते थे, लेकिन जब बोलते थे, तो उनके शब्दों का गहरा प्रभाव होता था।
डॉ. सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए उनके भाषणों में अक्सर शायरी का इस्तेमाल होता था। वे अपनी बात को प्रभावी ढंग से रखने के लिए शायराना अंदाज अपनाते थे। खासकर, संसद में तत्कालीन नेता विपक्ष सुषमा स्वराज के साथ उनकी शायरी की जुगलबंदी को खूब सराहा गया। यह वो दौर था, जब संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आज जैसी कटुता नहीं थी।
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मार्च 2011 में विकिलीक्स को लेकर संसद में काफी हंगामा हुआ। सुषमा स्वराज ने सरकार पर सांसदों को रिश्वत देने का आरोप लगाते हुए शहाब जाफ़री का शेर पढ़ा “तू इधर उधर की बात मत कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा,
हमें रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।”
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डॉ. मनमोहन सिंह ने इसका जवाब अल्लामा इकबाल के शेर से दिया”माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं,
तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख।”
2013 में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान भी डॉ. सिंह और सुषमा स्वराज के बीच शायरी की रस्म अदायगी हुई। डॉ. सिंह ने मिर्जा गालिब का शेर पढ़ा:
“हमें उनसे वफा की उम्मीद है,
जो नहीं जानते कि वफा क्या है।”
सुषमा स्वराज ने बशीर बद्र का शेर पढ़कर जवाब दिया:
“कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।”
साथ ही उन्होंने दूसरा शेर भी पढ़ा:
“तुम्हें वफा याद नहीं, हमें जफा याद नहीं।
जिंदगी और मौत के दो ही तराने हैं,
एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं।”
डॉ. मनमोहन सिंह के व्यक्तित्व का यह शायराना पहलू उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाता था। उनकी शायरी न केवल उनकी बौद्धिकता को दर्शाती थी, बल्कि यह भी दिखाती थी कि राजनीति में भी शब्दों का सौंदर्य कितना प्रभावी हो सकता है। उनके शब्द, चाहे अर्थशास्त्र पर हों या शायरी पर, हमेशा विचारशील और सार्थक रहे।
डॉ. मनमोहन सिंह का यह पहलू भारतीय राजनीति में हमेशा याद किया जाएगा, जहां विपक्ष के साथ स्वस्थ संवाद और साहित्यिक अभिव्यक्ति का एक अलग ही स्थान था।