Monday, January 13, 2025

निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर बने विदेशी संत वेद व्यासानन्द,स्वामी कैलाशनंद गिरी ने सौंपी जिम्मेदारी

महाकुम्भनगर । निरंजनी अखाड़े के पंच परमेश्वरों ने अखाड़े की छावनी में रविवार को विदेशी संत वेद व्यासानन्द को महामंडलेश्वर बनाया है। यह निर्णय एक विशेष धार्मिक कार्यक्रम के दौरान लिया गया, जिसमें विदेशी संत को इस सम्मानित पद पर आसीन किया गया।

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आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशनंद गिरी ने कहा कि वेद व्यसानन्द भारतीय साधना परम्पराओं और योग के प्रमुख प्रचारक रहे हैं। उनका यह पद प्राप्त करना निरंजनी अखाड़े के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इस निर्णय से अखाड़े के धार्मिक कृत्य और परम्पराओं को वैश्विक स्तर पर और अधिक मान्यता मिलेगी।

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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री महंत रवींद्र पुरी महाराज ने कहा कि आज निरंजनी अखाड़े की छावनी में वेद व्यासानन्द को महामंडलेश्वर बनाया गया है जो आज से महामंडलेश्वर स्वामी वेद व्यासानन्द के नाम से जाने जायेंगे। उन्होंने कहा कि अखाड़ों के संत धर्म के प्रमुख प्रचारक होते हैं। अखाड़े विशेष रूप से हिंदू धर्म के भीतर धार्मिक और समाजिक गतिविधियों के केंद्र होते हैं, जहां साधु-संत एकत्र होते हैं। इन संतों का मुख्य

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उद्देश्य धार्मिक ज्ञान, ध्यान, साधना, और समाज में धर्म का प्रचार करना होता है। वे लोगों को धार्मिक शिक्षा देते हैं, त्याग और तपस्या का पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं और समाज में नैतिकता एवं धर्म की महत्वता को बताते हैं।

आनंद अखाड़ा पिठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालका नंद गिरी महाराज ने कहा की अखाड़े न केवल धार्मिक गतिविधियों का संचालन करते हैं, बल्कि वे समाज में अच्छे आचरण और सामाजिक न्याय की दिशा में भी काम करते हैं। इनमें से कई संत समाज सुधारक भी होते हैं और जातिवाद, अंधविश्वास और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज

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उठाते हैं। उन्होंने कहा कि अखाड़ों में महामंडलेश्वर बनाने की परंपरा होती है यह परंपरा विशेष रूप से हिन्दू साधु-संतों के बीच प्रचलित है, जहां अखाड़े के पंचपरमेश्वरों (जो कि प्रमुख संत होते हैं) द्वारा किसी संत को महामंडलेश्वर का पद सबकी सहमति से प्रदान कर सकते है। उन्होंने कहा की महामंडलेश्वर का पद एक सम्मानजनक और महत्वपूर्ण पद होता है, जो साधु-संतों के बीच विशेष आध्यात्मिक और धार्मिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। यह सम्मान उन संतों को दिया जाता है जो अपने धार्मिक जीवन, सेवा और साधना में उच्चतम मानक स्थापित कर लेते हैं।

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निरंजनी अखाड़े के सचिव श्री महंत रामरतन गिरी महाराज ने कहा कि सनातन धर्म में भगवा रंग का अत्यधिक महत्व है। भगवा रंग को शुद्धता, त्याग, तपस्या, और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। यह रंग विशेष रूप से हिंदू साधु-संतों द्वारा पहना जाता है, जो अपने जीवन में सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर साधना और तपस्या के माध्यम से परमात्मा के साथ एकात्मता की ओर अग्रसर होते हैं। उन्होंने कहा भगवा रंग का सम्बंध भी सूर्य और अग्नि से है, जो शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। इसे तप और साधना के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। जो व्यक्ति की आत्मा के शुद्धिकरण का संकेत है। भगवा रंग विशेष रूप से संतों और गुरुओं के पहनावे में देखा जाता है, क्योंकि यह दर्शाता है कि वे आत्मसमर्पण, योग, और साधना के माध्यम से धार्मिक जीवन जी रहे हैं।

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उन्होंने कहा कि भगवा रंग सनातन धर्म के कई महत्वपूर्ण त्योहारों और अनुष्ठानों में भी प्रमुख रूप से प्रयोग होता है, और यह धार्मिक स्वीकृति और अधिकार का प्रतीक होता है। इस अवसर पर निरंजनी अखाड़े के सचिव श्री महंत रामरतन गिरी,महामंडलेश्वर स्वामी नर्मदा पुरी,गुरु माँ आनंदमई, महामंडलेश्वर स्वामी सोमेश्वरानन्द गिरी, महामंडलेश्वर स्वामी ललिता नन्द गिरी,महामंडलेश्वर स्वामी महेशनंद गिरी,महामंडलेश्वर स्वामी आत्मानंद गिरी,महामंडलेश्वर स्वामी निर्भयानन्द पूरी, महामंडलेश्वर स्वामी गजानंद गिरी, महंत डॉ आदित्यनंद गिरी, स्वामी प्रेमानन्द गिरी उपस्थित रहे।

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