Tuesday, January 21, 2025

कांग्रेस ने आआपा की चुनावी घोषणाओं पर उठाए सवाल

नई दिल्ली। कांग्रेस नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने चुनाव में आम आदमी पार्टी की ओर से की गई कुछ चुनावी घोषणाओं पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी (आआपा) द्वारा की गई चुनावी घोषणाओं में दिल्ली में पुजारियों और ग्रंथियों को 18000 रुपये प्रतिमाह वेतन देने का वादा किया गया लेकिन बौद्ध भिक्षु, रविदास मंदिर और वाल्मीकि मंदिर के पुजारियों को इसमें शामिल नहीं किया गया है।

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन में सलमान खुर्शीद ने सवाल उठाया कि दिल्ली में 314 बुद्ध विहार हैं, 150 वाल्मीकि मंदिर हैं और लगभग इतने ही रविदास मंदिर हैं। ये सब बहुजन समाज से संबंधित हैं। चर्चों के पादरियों को भी मानदेय मिलना चाहिए।

कांग्रेस नेता ने सवालिया लहजे में कहा कि आआपा ने 11 राज्यसभा सांसद बनाए हैं, जिनमें एक भी दलित और पिछड़े वर्ग का क्यों नहीं हैं? केजरीवाल को सिर्फ दलितों के वोट चाहिए, उनके प्रति कोई सहानुभूति नहीं है। केजरीवाल ने डा. अंबेडकर स्कॉलरशिप स्कीम की झूठी क्यों घोषणा की? उन्होंने कहा कि चुनाव को देखते हुए इसी प्रकार की घोषणा 2019 में भी की थी। पैसे के अभाव में दलित छात्र विदेश पढ़ने नहीं जा पाए थे। उनकी स्कॉलरशिप स्कीम नई बोतल में पुरानी शराब का खेल अब नहीं चलेगा। स्कॉलरशिप का सिर्फ 25 लाख वितरण हुआ, जबकि 5 करोड़ इसके विज्ञापन पर खर्च किए गए।

साल 2019 में दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने दलित छात्रों को विदेश में पढ़ाई की इसी तरह की योजना की घोषणा की थी कि विदेश में दलित छात्रों को इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट साइंस, एग्रीकल्चर साइंसेज़, अकाउंटिंग इत्यादि कोर्सेज़ के लिए मौक़ा मिलेगा। उसकी सच्चाई यह है कि पिछले 4 सालों में सिर्फ़ 4 छात्रों को इस योजना का लाभ मिला। उन्होंने कहा कि अगस्त 2023 में पार्लियामेंट्री कमेटी ने समझाया था कि इसकी राशि और शर्तें बदलिए नहीं तो योजना नहीं चलेगी। इसके बावजूद केजरीवाल असल में बस सुर्खियों में बने रहना चाहते थे, उन्हें दलितों का हित की कोई चिंता न थी, न है। 2006 में कांग्रेस सरकार ने पिछड़ों को उच्च शिक्षा में आरक्षण दिया था तब उसका विरोध ख़ुद केजरीवाल ने इक्वालिटी फोरम के माध्यम से क्यों किया था?

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि केजरीवाल का डॉ अंबेडकर की तस्वीर से मोहब्बत का दिखावा और विचार से नफ़रत उसी समय साफ उजागर हो गई, जब उन्होंने अपनी ही सरकार के मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम से इस्तीफ़ा ले लिया, क्योंकि उन्होंने अंबेडकर की 22 प्रतिज्ञा पढ़ी और उन पर काम करने की बात की। 2013 में अरविन्द केजरीवाल ने अस्थाई, तदर्थ, संविदा कर्मियों को पक्का करने के वादा किया था लेकिन उनको पक्का करने की जगह निजीकरण किया और कर्मचारियों की छंटनी कर उन्हें घर क्यों बैठा दिया?

उन्होंने जहांगीर पुरी और पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक हिंसा, बिलकिस बानो मामले पर आआपा नेताओं की चुप्पी पर भी सवाल उठाया। इसके अलावा शाहीन बाग में सीएए और एनआरसी विरोधी प्रदर्शन पर केजरीवाल के बयान और निजामुद्दीन मरकज मामले में उनकी भूमिका की आलोचना की। कुरान शरीफ की बेअदबी पर सजायाफ्ता विधायक नरेश यादव को पार्टी में रखना क्या न्यायसंगत है।

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