नयी दिल्ली- उत्तर प्रदेश के मथुरा की शाही मस्जिद समिति ने केंद्र सरकार पर पूजा स्थल अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जानबूझकर अपना जवाब दाखिल नहीं करने का आरोप लगाते हुए एक याचिका दाखिल कर उच्चतम न्यायालय से गुहार लगाई है कि केंद्र के इस अधिकार पर रोक लगा दी जाए।
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याचिका में कहा गया है कि चूंकि केंद्र सरकार कई अवसर दिए जाने के बावजूद अपना जवाब दाखिल करने में विफल रही है, इसलिए समिति ने अदालत से याचिकाओं पर जवाब देने के केंद्र के अधिकार पर रोक लगाने का निर्देश पारित करने का आग्रह किया ताकि मामले में कार्यवाही आगे बढ़ाया जा सके।
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याचिका में कहा गया है,“भारत सरकार जानबूझकर अपना जवाबी हलफनामा/जवाब दाखिल नहीं कर रही है, जिसका उद्देश्य वर्तमान रिट याचिका और संबंधित रिट याचिकाओं की सुनवाई में देरी करना है। इससे पूजा स्थल कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करने वालों को बाधा हो रही है।”
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समिति ने नौ सितंबर, 2022 को एक आवेदन के माध्यम से बताया कि इस (शीर्ष अदालत) अदालत ने दर्ज किया कि भले ही 1991 अधिनियम के खिलाफ रिट याचिका में नोटिस 12 मार्च, 2021 को जारी किया गया था, लेकिन केंद्र ने अपना जवाबी हलफनामा या जवाब दाखिल नहीं किया है।
समिति ने अदालत को बताया कि 12 दिसंबर, 2024 को इस अदालत ने केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया था, लेकिन वह इस पर अमल करने में विफल रहा।
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समिति ने कहा कि चूंकि शीर्ष न्यायालय ने वर्तमान रिट याचिका और संबंधित रिट याचिकाओं की सुनवाई की तिथि 17 फरवरी तय की है, इसलिए यह न्याय के हित में होगा कि केंद्र का जवाबी हलफनामा/उत्तर/याचिका/प्रस्तुतियां दाखिल करने का अधिकार समाप्त कर दिया जाए।
उच्चतम न्यायालय ने 12 दिसंबर, 2024 को 1991 के कानून के खिलाफ कई याचिकाओं पर कार्रवाई करते हुए सभी अदालतों को नए मुकदमों पर विचार करने और धार्मिक स्थलों को पुनः प्राप्त करने की मांग करने वाले लंबित मामलों में कोई भी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने पर रोक लगा दी थी।
शीर्ष अदालत ने 1991 के इस कानून के क्रियान्वयन के लिए गैर सरकारी संगठनों – जमीयत उलमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा दायर याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया।
अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर मुख्य याचिका सहित कई याचिकाओं में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी गई थी।
वर्ष 1991 का यह कानून किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को 15 अगस्त, 1947 को मौजूद रहने के रूप में बनाए रखने का प्रावधान करता है।