स्त्री अपना बनाव–श्रृंगार पति की वजह से और उसके लिये करती है। पति बिछड़ जाये, वह सपने में भी नहीं सोचती। वह उसकी दीर्घायु के लिये व्रत, उपवास, पूजा पाठ आदि करती है। पति के खाने से लेकर वह उसकी हर सुविधा का हर पल ध्यान रखती है।
पति की दुनिया भी अपनी पत्नी व उसके जन्मे बच्चों से होती है। जहां पत्नी पति का ध्यान रखती है वहां पति भी पत्नी के लिये जी–जान से तैयार रहता है मगर कभी–कभी ऐसा भी देखा और सुना गया है कि वह पति जो अपनी पत्नी के लिये सदा जी–जान से तैयार रहता है, वह उसी पत्नी से बौखलाया भी रहता है।
जब पत्नी रात को पति की मांग का तिरस्कार कर यह तर्क देती है कि क्या यह जरूरी है? मुझे तो केवल साथ रहना, सोना ही तृप्ति दे देता है, फिर यह सब क्यों? अपनी ही दृष्टि से इस तरह इकतरफा सोचने वाली पत्नी यौन संबंधों के मामले में खुदगर्ज व पति का दिल तोड़ने वाली होती है।
हर कोई पत्नी पति से जेवर, कपड़ा पाने की इच्छा रखती है बल्कि इसे अपना अधिकार भी समझती है पर पति के अधिकार की बात आते ही बिदक सी जाती है और इसे यथासंभव टालना चाहती है।
स्त्री स्वयं नहीं समझ पाती कि पति को देखकर, उसका स्पर्श पाते ही वह उत्तेजित क्यों नहीं हो पाती जबकि पुरूष स्त्री का स्पर्श पाते ही उत्तेजित हो जाता है और अपने दिल की बात स्त्री को बता देता है। स्त्री बिना उत्तेजित हुए भी पुरूष का साथ दे सकती है जबकि पुरूष ऐसा चाहकर भी नहीं कर पाता। उसका उत्तेजित होना ही पहली आवश्यकता है।
शारीरिक संरचना के इस अंतर के बाद भी संभोग का उद्देश्य जो आनंद है, तृप्ति है, तभी पूरा हो पाता है जब पत्नी भी सहयोग दे वरना कार्य समाप्ति पर पत्नी की रजामंदी न होने के कारण पति को लगता है कि उसने पत्नी के साथ बलात्कार किया है। इससे काम तो हुआ पर हल्कापन या आनन्द किसी को भी नहीं मिला।
स्त्रिायां संभोग में निष्क्रिय क्यों रहती हैं? इसे आज भी केवल बच्चा पैदा करने का तरीका ही क्यों मानती हैं? इसका कारण है बचपन का लालन–पालन व मां द्वारा की गयी संभाल परवाह। शुरू से ही घरों में लड़की को ज्यादा नियंत्राण व देखभाल में रखा जाता है। उसे मां द्वारा अनेक निर्देश दिये जाते हैं पर इन निर्देशों का पालन क्यों करना चाहिए, यह कोई मां स्पष्ट नहीं करती।
जब सामान्य बातें ही खुलेपन से नहीं की जाती तो शारीरिक मिलन, संभोग, यौन आदि की चर्चा होने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। इन बातों से अनभिज्ञ लड़की जब बहू बन कर पति के घर जाती है तो इस ज्ञान से तो शून्य होती है। शादी के बाद उसका जीवन बदल जाता है। कुछ अधकचरा ज्ञान सखियों, फिल्मों या उपन्यासों से जो उसे मिलता है वह उसे भ्रम में ही डाल देता है।
आधुनिक पढ़ी लिखी लड़कियां तो इंटरनेट से काफी जानकारी ले लेती हैं। उस जानकारी को भी कभी कभी वे व्यवहार में ले आती हैं जो विवाहोपरांत मुश्किल में डाल सकता है।
बचपन तथा युवावस्था का अज्ञान ही दांपत्य में रोड़े अटका कर पति को पर–स्त्राीगामी होने के लिए मजबूर करता है। सैक्स जीवन की आवश्यकता है, इसे कोई गलत नहीं साबित कर सकता। पति को चाहिए कि वह पत्नी को सैक्स के ज्ञान से पूरी तरह अवगत कराने की कोशिश करे।
कदम भटकने की स्थिति न आये, इसके लिये पति को पत्नी को ही आनन्द का माध्यम मानकर उससे पूरा सहयोग करना चाहिए। इससे उसे रसास्वादन की आदत पड़ जायेगी, हिचक दूर होगी और पति से पीछे हटने की अपेक्षा वह पति का साथ देगी जिससे दांपत्य जीवन की नींव सुदृढ़ होगी।
यदि पत्नी भी समझ ले कि उसके दांपत्य कर्म में आधे मन से सहयोग देने से पति को शारीरिक मिलन का आनन्द नहीं मिलता और इसकी खीज जीवन के दूसरों पक्षों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव डालती है और यह जानकर वे स्वयं को पति के अनुरूप ढालने का प्रयास करें तो पति घर में ही रहेगा। उसके कदम बाहर नहीं भटकने पायेंगे।
आज की पत्नी पढ़ी–लिखी है, समझदार है। उसे यह शोभा नहीं देता कि वह पति को इस बात के लिये नाराज करे। अपने मन को तैयार कर स्वयं को पति के लिये प्रस्तुत करने से यदि गृहस्थी का सुख बढ़ता है, पति संतुष्ट रहता है तो स्वयं को समझा कर वैसी ही तैयारी के साथ पति के पास जाने में हिचक कैसी। यह बात भूलने की नहीं है। बस, गिरह में बांधकर अमल में लाने की है।
विनोद कुमार वर्मा