निराकार होने से कोई यह अर्थ नहीं बन जाता कि वह निराकार वस्तु किसी भी माध्यम से दिखाई नहीं देती अथवा अनुभव नहीं की जा सकती। ऐसा नहीं है। वायु भी निराकार है खुली आंखों से वह दिखाई नहीं देती, परन्तु स्पर्श द्वारा उसका अनुभव किया जा सकता है। इसके साथ ही वैज्ञानिक सूक्ष्मदर्शी यंत्रों आदि के द्वारा उसके विभिन्न तत्वों को जान लेते हैं कि इसमें इतना ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन आदि गैस विद्यमान है। वायु की भांति ईश्वर भी निराकार और सूक्ष्म होने से बाह्य दृष्टि से वह दिखाई नहीं देता, परन्तु ध्यान योग की सूक्ष्म दृष्टि से योगीजन ईश्वर का साक्षात्कार कर लेते हैं और उसके आनन्द का अनुभव भी करते हैं। मनुस्मृति के छठे अध्याय में स्पष्ट कहा गया है कि योग द्वारा परमात्मा की सूक्ष्मता का दर्शन करे। गीता का छठा अध्याय भी ध्यान योग के विषय में ही है। इसे ध्यान योग के द्वारा ईश्वरीय परमानन्द प्राप्ति की ही चर्चा है। इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि निराकार ईश्वर को देखा भी जा सकता है, अनुभव भी किया जा सकता है। यदि यह सम्भव न होता तो शास्त्रों में ध्यान योग द्वारा ईश्वर को देखने और अनुभव करने की बात न होती।