गाजियाबाद। उत्तर प्रदेश में पेट्रोल पंप संचालकों को संचालकों को सरकार से सत्य विधायक दी गई है कि टू व्हीलर चालकों को बिगर हेलमेट लगाए पेट्रोल ना दें लेकिन गाजियाबाद में हेलमेट नहीं तो पेट्रोल नहीं अभियान को लागू करने की कोशिश कई बार की गई, लेकिन यह पूर्ण रूप से कामयाब नहीं हो सका। इसके पीछे कई मुख्य कारण हैं, जिन्हें सामाजिक, प्रशासनिक और जनता में जागरूकता व व्यावहारिक दृष्टिकोण से समझा जा सकता है।
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लोगों में जागरूकता और सहयोग की कमी टू व्हीलर चालक जागरूक नहीं हो रहे हैं
गाजियाबाद जैसे शहर में दोपहिया वाहन चालकों की संख्या बहुत अधिक है, लेकिन हेलमेट के प्रति जागरूकता अभी भी कम है। कई लोग इसे अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं और नियम का पालन करने में अनिच्छा दिखाते हैं। अभियान के शुरुआती दिनों में लोगों ने इसका विरोध किया और पेट्रोल पंप संचल को का कहना है टू व्हीलर चालक जो तेल डालने के लिए आते हैं और हेलमेट लगाए नहीं होते हैं पेट्रोल पंप कर्मी जब पेट्रोल देने को मना करते हैं तो टू व्हीलर चालक कर्मियों के साथ बहस या मारपीट की घटनाएं भी सामने आईं। इससे नियम को सख्ती से लागू करना मुश्किल हो गया।पेट्रोल पंप संचालकों की सुरक्षा पेट्रोल पंप कर्मचारियों को इस नियम को लागू करने की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन उनके पास इसे प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए पर्याप्त अधिकार या सुरक्षा नहीं थी। कुछ मामलों में, बिना हेलमेट वालों को पेट्रोल देने से मना करने पर कर्मचारियों पर हमले हुए। उदाहरण के लिए, पहले भी लोनी क्षेत्र में एक पंप पर सेल्समैन पर गोली चलाने की घटना हो चुकी है। ऐसे में पंप संचालक और कर्मचारी नियम लागू करने से हिचकते हैं, क्योंकि उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं होती।
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पेट्रोल पंप संचल को नहीं कहा पुलिस और प्रशासनिक समर्थन की कमी
गाजियाबाद मे इस अभियान को सफल बनाने के लिए पुलिस और प्रशासन की आरटीओ विभाग में आपूर्ति विभाग की भी सक्रिय भागीदारी जरूरी थी, लेकिन कई बार ऐसा देखा गया कि पेट्रोल पंपों पर नियम तोड़ने वालों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई नहीं हुई। सीसीटीवी कैमरे लगाने और निगरानी के निर्देश तो दिए गए, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे पंपों पर इनका पालन नहीं हो सका। पुलिस की सीमित मौजूदगी के कारण पंप संचालक अकेले नियम लागू करने में असमर्थ रहे।