हम किसी लम्बी या छोटी यात्रा पर जाते हैं तो पर्याप्त सतर्कता बरतते हैं, बरतनी भी चाहिए अन्यथा हानि की सम्भावना भी हो सकती है।
जीवन व्यवहार में हम अपने और अपने परिवार की सुरक्षा के प्रति सतर्क रहते हुए भी यह भूल जाते हैं कि मनुष्य की जीवन यात्रा केवल इसी लोक तक सीमित नहीं। एक न एक दिन अपना शरीर छोड़कर उस अनन्त यात्रा पर निकलना है, जिस यात्रा का न तो आरम्भ करने का समय निश्चित है, न यह पता कि कहां जाना है, किससे मिलना है, वहां पहुंचकर क्या करना है, लौटकर आना भी है या नहीं।
जाने का मार्ग भी ज्ञात नहीं होता, साथ में कोई सामान भी नहीं होता। यह सब देख सुनकर ही नीतिकार कहते हैं कि लोक जीवन की सभी यात्राओं में सतर्क रहते हुए भी हमें अपने परलोक जीवन की यात्रा के लिए भी सतर्क रहना चाहिए और यह विचार करते रहना चाहिए कि उस यात्रा पर जाने के लिए कैसी तैयारी करें, क्योंकि उस यात्रा में इस संसार की कोई भी सामग्री हमारे साथ नहीं जायेगी और न ही कोई प्रिय व्यक्ति हमारे साथ जा सकेगा। इतना ही नहीं, हमारा अपना यह शरीर भी हमें यहीं छोड़कर जाना पड़ेगा। यह यात्रा केवल मनुष्य के लिए ही नहीं, सभी जीवों के लिए अनिवार्य है।
मनुष्य विवेकी और विचारवान है इसलिए उसे सदैव धर्म का आचरण करना चाहिए, क्योंकि मृत्यु के पश्चात उस अनन्त यात्रा पर धर्म ही साथ जाता है और धर्म ही कल्याणकारी होता है।