बाल श्रम के खिलाफ हर साल 12 जून को ‘विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। पहली बार यह दिवस वर्ष 2002 में बाल श्रम को रोकने के लिए जागरूकता और सक्रियता बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था। बाल श्रम इतनी आसान समस्या नहीं है, जितनी लगती है। बच्चों को उनकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी प्रकार के काम में शामिल करने का कार्य है बाल श्रम, जो उनके मौलिक अधिकारों को बाधित करता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार चौदह वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को किसी कारखाने या खदान में या किसी खतरनाक रोजगार में नियोजित नहीं किया जाएगा। बाल श्रम की समस्या केवल भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह पूरे विश्व में प्रचलित है। यह समस्या अफ्रीका और भारत सहित कई अविकसित या विकासशील देशों में प्रमुख है। बाल श्रम एशिया में 22 फीसदी, अफ्रीका में 32 फीसदी, लैटिन अमेरिका में 17 फीसदी, अमेरिका, कनाडा, यूरोप और अन्य धनी देशों में 1 फीसदी है।
जब हम किसी रेस्तरां, टी-स्टॉल, होटल, कारखानों अथवा चूड़ी उद्योग में जाते हैं तो हम वहां 14 साल से कम उम्र के बच्चों को आसानी से काम करते हुए देख सकते हैं। सुबह-सुबह घर-घर अखबार बांटना, सड़क किनारे जूते पॉलिश करना, कूड़े-कचरे के ढ़ेर में कागज-पॉलीथिन चुनना, 21वीं सदी में भी जब खेलने-कूदने और पढऩे-लिखने की उम्र में लाखों बच्चों को ऐसे कार्यों के जरिये अपने परिवार के लिए आय जुटाते देखते हैं तो बहुत दुख होता है। इसके अलावा बीड़ी उद्योग, कालीन उद्योग, कांच, पीतल, ज्वैलरी उद्योग सहित कई अन्य खतरनाक काम-धंधों में भी मासूम बचपन हाड़-तोड़ मेहनत करते देखा जाता है।
बाल श्रम न केवल उन्हें उनकी आवश्यक शिक्षा से वंचित कर रहा है बल्कि जिस अस्वच्छ वातावरण के तहत वे काम कर रहे हैं, वहां तरह-तरह की बीमारियां होने की संभावना भी कई गुना ज्यादा रहती है। ऐसे माहौल में काम करने वाले बच्चों को सांस की बीमारी, त्वचा रोग, दमा, टीबी, रीढ़ की हड्डी की बीमारी, कैंसर, कुपोषण, समय से पहले बुढ़ापा इत्यादि कुछ घातक बीमारियां होने की संभावना बढऩे के अलावा यह समस्या राष्ट्र की प्रगति और विकास के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में उभरती है।
दरअसल देश की युवा पीढ़ी के कंधों पर ही देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और बालश्रम जैसी समस्या के कारण वही प्रभावित होती है तो राष्ट्र के विकास की रफ्तार प्रभावित होना भी तय है।
बाल श्रम की प्रथा के पीछे कई कारण हैं लेकिन इस मुद्दे की महत्वपूर्ण रीढ़ गरीबी ही है। जब कोई परिवार पानी, भोजन, शिक्षा इत्यादि अपनी मूलभूत दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं हो पाता तो कई बार ऐसे कुछ परिवार अपनी इन जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने छोटे-छोटे मासूम बच्चों को पढऩे के लिए स्कूल भेजने के बजाय काम पर भेजने के विकल्प का चयन करते हैं और ऐसे ही कुछ परिवार बाल तस्करों के शिकंजे में फंस जाते हैं तथा कुछ हजार रुपयों के लिए अपने जिगर के टुकड़े को उनके हवाले कर देते हैं।
निरक्षरता दर में वृद्धि, बड़े पैमाने पर विस्थापन इत्यादि के पीछे संचालित कारक गरीबी ही है। गरीबी के अलावा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच की कमी, निरक्षरता, मौलिक अधिकारों और 1986 के बाल श्रम अधिनियम के बारे में सीमित ज्ञान, ये सभी कारक भी बाल श्रम की समस्या को विकराल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये कारक न केवल बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों और बचपन से वंचित कर रहे हैं बल्कि देश को अंधकारमय भविष्य की ओर धकेलने में भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
बहरहाल, बालश्रम जैसी गंभीर होती समस्या को जड़ से मिटाने के लिए सबसे पहले हमें अभिशाप बनती गरीबी जैसी इसकी रीढ़ पर हमला करना होगा। सरकार को मौजूदा कानूनों और नीतियों में कुछ आवश्यक बदलाव करने की जरूरत है, इसके अलावा कौशल विकास पर ध्यान देने और रोजगार के अधिक से अधिक अवसर पैदा करने की भी नितांत आवश्यकता है।
बाल श्रम जैसी विकराल समस्या से निपटने के लिए बालश्रम को लेकर बने सभी कानूनों को सख्ती से लागू करने के अलावा इनमें मौजूद तमाम खामियों को दूर करने और दृढ़संकल्प के साथ इन कानूनों को लागू किए जाने की भी दरकार है। हमें एक समाज के रूप में भी एक साथ आने और हाथ मिलाने की जरूरत है। जब भी हम कहीं बाल श्रम की कोई प्रथा देखते हैं तो हमें तुरंत पुलिस और संबंधित अधिकारियों से सम्पर्क करना चाहिए।
इस समस्या के उन्मूलन के लिए गैर-सरकारी संगठनों को भी आगे आना चाहिए और इसके बारे में जागरूकता फैलाने के लिए देशभर में ऐसे अभियान शुरू करने की दरकार है, जिससे जन-जन को इस समस्या के कारणों और निवारण के बारे में जागरूक किया जा सके।
(लेखक-अतुल गोयल)