Monday, December 23, 2024

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस: बाल श्रम पर लगे लगाम

भारत में सबसे अधिक आबादी नवयुवकों की है। इसीलिए इसे युवाओं का देश कहा जाता है। युवा शक्ति के बल पर ही भारत विश्व का सिरमौर देश बनने का प्रयास कर रहा है। इतना होने के उपरांत भी आज भारत में बड़ी संख्या में बाल श्रमिक कार्यरत है। जो भारत की युवा शक्ति पर एक बदनुमा दाग लगाते हैं।

युवा शक्ति वाले देश में बच्चों से काम करावाना जहां युवा शक्ति का अपमान है वहीं देश की छवि भी खराब करता है। इसके लिए सरकार व समाज को मिलकर देश में बाल मजदूरी की प्रथा को बंद करवाना होगा। तभी सही मायने में विकसित भारत बन पाएगा।

बच्चों को जिस उम्र में खेलना-कूदना, पढऩा चाहिए। उस नन्ही सी उम्र में वह अपने परिवार का पेट पालन के लिए विभिन्न कल-कारखानों, लोगों के घरों पर, खेत खलिहान में व अन्य स्थानों पर काम करते नजर आते हैं। छोटे-छोटे बच्चों को कठोर काम करते देखकर लोगों का हृदय द्रवित हो जाना चाहिए मगर ऐसा होता नहीं है।

बहुत से घरों में छोटे बच्चों को घरेलू कामगार के रूप में काम करते देखा जा सकता है। जहां संपन्न परिवारों के बच्चे अच्छे और महंगे स्कूलों में पढ़ते हैं। वही उसी घर में एक गरीब मां बाप का छोटा बच्चा उनके घरेलू काम करता नजर आता है। एक देश में समाज की दो व्यवस्थाएं देखी जा सकती है। यह समाज ही नहीं देश के विकास की राह में भी सबसे बड़ी बाधा है।

बाल मजदूरी उन्मूलन के लिए दुनिया भर में 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। बाल मजदूरी के खिलाफ जागरूकता फैलाने और 14 साल से कम उम्र के बच्चों  को इस काम से निकालकर उन्हें शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से 2002 में द इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन की ओर से इस दिवस की शुरुआत की गई थी। बाल श्रम के खात्मे के लिए आज के दिन श्रमिक संगठन, स्वयंसेवी संगठन और सरकारें तमाम आयोजन करती हैं। इसके बावजूद बाल मजदूरी पर लगाम नहीं लग पा रही है।

बाल श्रम से तात्पर्य ऐसे काम से है जो मानसिक, शारीरिक, सामाजिक या नैतिक रूप से बच्चों के लिए खतरनाक और हानिकारक है। उनकी स्कूली शिक्षा में हस्तक्षेप करता है। उन्हें स्कूल जाने के अवसर से वंचित करने व उन्हें समय से पहले स्कूल छोडऩे के लिए बाध्य करता है। बाल मजदूरी और शोषण के अनेक कारण हैं। जिनमें गरीबी, सामाजिक मापदंड, वयस्कों तथा किशोरों के लिए अच्छे कार्य करने के अवसरों की कमी शामिल हैं। ये सब वजहें सिर्फ कारण नहीं बल्कि भेदभाव से पैदा होने वाली सामाजिक असमानताओं के परिणाम हैं।

देश के विभिन्न क्षेत्रों में छोटे स्तर पर होटल, घरों व फैक्ट्री में काम कर या अलग अलग व्यवसाय में मजदूरी कर लाखों, करोड़ों बाल श्रमिक अपने बचपन को तिलांजलि दे रहें हैं। जिन्हें न तो किसी कानून की जानकारी है, और ना ही पेट पालने का कोई और तरीका पता है। भारत में ये बाल श्रमिक कालीन, दियासलाई, रत्न पॉलिश व जवाहरात, पीतल व कांच, बीड़ी उघोग, हस्तशिल्प, सूती होजरी, नारियल रेशा, सिल्क, हथकरघा, कढ़ाई, बुनाई, रेशम, लकड़ी की नक्काशी, फिश फीजिंग, पत्थर की खुदाई, स्लेट पेंसिल, चाय के बागान में कार्य करते देखे जा सकते हैं।

लेकिन कम उम्र में इस तरह के कार्यों को असावधानी से करने पर इन्हें कई तरह की बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। एक अध्ययन में पता चला है कि जितने भी बच्चे बालश्रम में लिप्त हैं वे या तो निरक्षर थे या पढ़ाई छोड़ दी थी। इनमें  अधिकांश बच्चे बीमार पाए गए और कई बच्चे नशे के आदि भी हो गये।

बाल श्रम की समस्या का मुख्य कारण निर्धनता और अशिक्षा है। जब तक देश में भुखमरी रहेगी तथा देश का हर नागरिक शिक्षित नहीं होंगा तब तक इस प्रकार की समस्याएं ज्यों की त्यों बनी रहेंगी। देश में बाल श्रमिक की समस्या के समाधान के लिये प्रशासनिक, सामाजिक तथा व्यक्तिगत सभी स्तरों पर प्रयास किया जाना आवश्यक हैं। देश में कुछ विशिष्ट योजनाएं बनाई जाएं तथा उन्हें कार्यान्वित किया जाए। जिससे लोगों का आर्थिक स्तर मजबूत हो सके और उन्हें अपने बच्चों को श्रम के लिये विवश न करना पड़े। प्रशासनिक स्तर पर सख्त-से-सख्त निर्देशों की आवश्यकता है जिससे बाल-श्रम को रोका जा सके। व्यक्तिगत स्तर पर बाल श्रमिक की समस्या का निदान हम सभी का नैतिक दायित्व है। इसके प्रति हमें जागरूक होकर इसके विरोध में आगे आना चाहिये।

बाल श्रम केवल भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह एक वैश्विक घटना है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमान के मुताबिक विश्व में तकरीबन 22 करोड़ बाल श्रमिक हैं। अकेले भारत में ही करीबन दो करोड़ बाल श्रमिक कार्यरत हैं। यूनीसेफ के अनुसार बच्चों का नियोजन इसलिये किया जाता है ताकि उनका आसानी से शोषण किया जा सके। बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम जिन कारणों से करते हैं, उनमें आमतौर पर गरीबी पहला कारण है। इसके अलावा, जनसंख्या विस्फोट, सस्ता श्रम, उपलब्ध कानूनों का लागू नहीं होना, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अनिच्छुक माता-पिता जैसे अन्य कारण भी हैं।

पूरी दुनिया के लिये बाल श्रम की समस्या एक चुनौती बनती जा रही है। विभिन्न देशों द्वारा बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाने के लिये समय समय पर विभिन्न प्रकार के कदम उठाए गए हैं। बाल श्रम को काबू में लाने के लिये विभिन्न देशों द्वारा प्रयास किये जाने के बाद भी इस स्थिति में सुधार न होना चिंतनीय है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चलता है कि बाल श्रम को दूर करने में हम अभी बहुत पीछे हैं।

बाल श्रम (प्रतिबंध एवं नियमन) संशोधन अधिनियम 2016 के जरिए बाल श्रम (प्रतिबंध एवं नियमन) अधिनियम 1986 में संशोधन किया गया है। ताकि किसी काम में बच्चों को नियुक्त करने वाले व्यक्ति पर जुर्माना के अलावा सजा भी बढ़ाई जा सके। संशोधित कानून सरकार को ऐसे स्थानों पर और जोखिम भरे कार्यों वाले स्थानों पर समय समय पर निरीक्षण करने का अधिकार देता है जहां बच्चों के रोजगार पर पाबंदी है। संशोधित कानून के जरिए इसका उल्लंघन करने वालों के लिए सजा को बढ़ाया गया है। बच्चों को रोजगार देने वालों को अब छह महीने से दो साल की जेल की सजा होगी या 20,000 से लेकर 50,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों लग सकेगा। कानून के मुताबिक किसी भी बच्चे को किसी भी रोजगार या व्यवसाय में नहीं लगाया जाएगा।

पिछले कुछ वर्षों से केंद्र एवं राज्य सरकारों की पहल इस दिशा में सकारात्मक रही है। उनके द्वारा बच्चों के उत्थान के लिये अनेक योजनायें प्रारंभ की गयी है। जिससे बच्चों के जीवन व उनकी शिक्षा पर सकारात्मक प्रभाव दिखे। शिक्षा का अधिकार भी इस दिशा में एक सराहनीय कार्य है। इसके बावजूद बाल श्रम अभी भी एक विकट समस्या बना हुआ है। बाल श्रम को रोकने के लिये समाज के प्रमुख लागों को समाज में जागरूकता लाने का प्रयास करना चाहिये। बच्चो से काम करवाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करवानी चाहिये। तभी बाल श्रम पर रोक लग पायेगी।
(लेखक-रमेश सर्राफ धमोरा)

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