पटना। बिहार में विपक्ष द्वारा जिस तरह से सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड में टूट को लेकर बयानबाजी हो रही है, उससे कई तरह की आशंकाओं को बल मिला है। इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी पहले पार्टी के विधायकों, विधान पार्षदों और अब सांसदों से एक-एक कर मिल रहे हैं। जैसे-जैसे समय गुजर रहा है, वैसे-वैसे महागठबंधन में जदयू के सवर्ण विधायकों की चिंता बढ़ रही है।
दरअसल, जदयू के अधिकांश विधायक ऐसे हैं, जो राजद प्रत्याशी के खिलाफ एनडीए की वोट की बदौलत जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। इनमें सवर्ण विधायक मझधार में फंसे नजर आ रहे हैं। माना जाता है कि बिहार में बहुत कम सवर्ण मतदाता राजद के समर्थक हैं। ये विधायक दबी जुबान में यह स्वीकार भी करते हैं कि सत्ता में बने रहने को लेकर अभी भले साथ हैं पर जब चुनाव में जाएंगे तो उनकी असल जरुरत यानी एनडीए वोट बैंक की होगी।
जदयू के एक विधायक नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहते हैं कि जदयू, राजद के जंगलराज के ही खिलाफ सत्ता तक पहुंची थी। ऐसे में किस मुंह से हम उसी राजद के साथ होकर वोट मांगने जाएंगे। कई विधायकों को जातीय समीकरण बिदकने का भी डर सता रहा है।
जदयू के नेता भी मानते हैं कि राजद के साथ चुनावी मैदान में उतरना आसान नहीं है। हालांकि, जदयू के एक नेता यह भी कहते हैं कि राजद के साथ पहले एक चुनाव लडा गया है और मतदाताओ का समर्थन भी मिला था।
इधर, राजनीतिक विश्लेषक अजय कुमार भी कहते हैं कि जदयू के लिए राह आसान नहीं है। जदयू के अधिकांश विधायक संशय में हैं। कुछ विधायक जहां क्षेत्र को लेकर भी असमंजस में हैं। वहीं, खास वर्ग का वोट पाने वाले विधायक भी मझधार में हैं।