जब मनुष्य किसी मृतक के दाह संस्कार में सम्मिलित होने के लिए श्मशान घाट पर जाता है तो उसका मन वैराग्य से भर उठता है। उस समय मन परम तत्व के नियंत्रण में आ जाता है। यह वैराग्य किसी अन्य कारण से नहीं अपितु अपनी मृत्यु दिखने से पैदा होता है। जो पड़ौसी के साथ हुआ उसके साथ भी हो सकता है, किन्तु वैराग्य लुप्त होते भी समय नहीं लगता।
यहां लोग और मोह परमतत्व ईश्वर और मृत्यु को पीछे छोड़ सांसारिक कामनाओं की सूची खोल देते हैं। श्मशान में पैदा हुआ वैराग्य न जाने कहां तिरोहित हो जाता है।
भय और भगवान के बीच एक रहस्यात्मक सम्बन्ध है। जब मनुष्य भयभीत होता है तो उसे भगवान याद आते हैं। मनुष्य चाहता है कि वह जीवन के सबसे बड़े भय ‘मत्यु’ का कभी स्मरण न करे, जबकि ईश्वर चाहता है कि मनुष्य सदैव अपने ‘अन्त’ को याद रखे।
ईश्वर सदैव मनुष्य को इस सत्य (मृत्यु) से जोड़े रखने के लिए कुछ ऐसा करता रहता है कि जो मनुष्य को पसंद नहीं, प्रिय नहीं, परन्तु मनुष्य है कि मानता नहीं, उस ‘सत्य’ को भूलकर सदैव ही ऐसे कार्य करता रहता है, जो ईश्वर को प्रिय नहीं और पाप बटोरता रहता है और ‘अन्त’ समय तक जो निश्चित है, उस पाप की गठरी को भारी करता रहता है।