Saturday, November 23, 2024

तनाव से भी हो सकते हैं आंतों के रोग

नियमित रूप से खुलकर शौच न होने से मन अशांत रहने लगता है। कभी-कभी कब्ज यदि दस्त ग्रस्त होता है तो शरीर निढाल सा हो जाता है। चिकित्सा शास्त्र के अनुसार नियमित खुलकर शौच न होने के कारणों से अनेक बीमारियां हो सकती हैं।

अपच, कब्ज, दस्त, पेट दर्द आदि अनेक ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें पेट की सामान्य समस्या कहा जाता है। इन समस्याओं के अनेक कारण हो सकते हैं।

अनेक शोधों से यह बात सामने आयी है कि अनगिनत व्यक्तियों में पेट संबंधी ये समस्याएं किसी शारीरिक बीमारी के कारण नहीं बल्कि तनावों के कारण होती हैं। इसे आई.बी.एस अर्थात् इरिटेबल बाउल सिन्ड्रोम के नाम से जाना जाता है।

एक अनुमान के मुताबिक लगभग बीस प्रतिशत वयस्क इस रोग की चपेट में हैं। इस बीमारी से परेशान लोग लगातार इससे छुटकारा पाने के लिए अनेक प्रकार के चूर्ण, दवाओं एवं अन्य घरेलू उपचार करते नजर आते हैैं।

आज के समय में लगभग अस्सी प्रतिशत वयस्क बेवजह तनाव व चिंताग्रस्त रहते हैं। तनाव या चिंता के कारण सीमित नहीं होते। मानसिक तनाव, चिंता, हड़बड़ी, दु:ख इत्यादि अनेक कारणों से आंतों की चाल में बदलाव होने लगता है जिससे कब्ज, दस्त, अपच, पेट दर्द इत्यादि अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

विशेेषज्ञों के अनुसार तनाव चिंता आदि के कारणों से आंतें संवेदनशील हो जाती हैं। मानसिक तनाव या अन्य संक्रमण के बाद आंतें असामान्य रूप से प्रतिक्रिया करने लगती हैं। कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिनमें खान-पान की अनियमितता आदि के कारणों से भोज्य पदार्थों के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न होकर रोग के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। कई मायनों में यह माता-पिता से संतानों को प्राप्त होकर वंशानुगत भी हो जाता है।

आई.बी.एस. के संक्रमण के साथ ही अनेक लक्षण प्रकट होने लगते हैं। कब्ज या दस्त की प्रधानता रहती है। पेट में मरोड़, दर्द होना आदि प्रारम्भ हो जाता है। शौच के बाद कुछ राहत मिलती है। पेट फूलना, डकार आना, गैस के साथ-साथ के (मितली), उल्टी, सीने में जलन आदि की भी अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। कब्ज होने पर मल कड़ा हो जाता है तथा मलद्वार में दर्द होने लगता है।

इस स्थिति में दस्त के समय बार-बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दर्द के साथ मल निकलता है। आंव हो जाता है किंतु खून नहीं निकलता। शौच खुलकर नहीं होता जिसके कारण अनेक बार शौच जाना पड़ता है। आई.बी.एस. के अनेक मरीजों में बार-बार पेशाब होने की भी समस्या आ खड़ी होती है। पीठ दर्द, सरदर्द, थकान आदि की भी समस्याएं आ जाती हैं।

इस बीमारी के कारण महिलाओं में मासिक से पहले या मासिक के बाद दर्द रहने की समस्या भी बन जाती हे। पेट दबाने से दर्द महसूस होता रहता है। इनकी भूख सामान्य होने लगती है तथा वजन बढऩे लगता है। बार-बार इस प्रकार के अटैक से मोटापा बढऩे की भी शिकायत होने लगती है।

यह रोग पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं में 2-3 गुना अधिक पाया जाता है। इसके रोग का उपचार इसकी  गम्भीरता के अनुसार किया जाता है। इसके रोगी को गरिष्ठ भोजन, तेल, मसाले खटाई आदि का व्यवहार अत्यंत कम मात्रा में करना चाहिए। बासी भोजन अत्यंत गर्म या ठंडे भोजन से परहेज करना चाहिए। चाय, काफी, शराब, सिगरेट का सेवन छोड़ देना ही बेहतर होता है। रेशेयुक्त पदार्थों का सेवन फल, सब्जी, अंकुरित दाने, चोकर युक्त आटे की रोटी का सेवन लाभप्रद होता है।

वास्तव में आई. बी.एस स्वयं में कोई स्वतंत्र रोग न होकर अन्य रोगों का सामान्य लक्षण मात्र है। इसमें मरीजों के सभी जांच व परीक्षण सामान्य होते हैं। तनाव या मानसिक चिंतन से उत्पन्न होने वाला यह रोग आंतों की पाचन क्रिया को निष्क्रिय बनाकर उसकी सहज प्रक्रिया में बाधा डालता है। रोग पुराना होने पर आंतों के घाव या कैंसर में भी बदल सकता है। इस बीमारी के कारण प्रजनन क्रियाओं मेें भी बाधा पहुंच सकती है। अत: इस बीमारी के प्रति प्रारंभ से ही चेतना की आवश्यकता है।

– आनंद कुमार अनंत

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