किसी व्यक्ति से कुछ कहने, कुछ लेने अथवा किसी कार्य में सहायक बनने के लिए कहने के दो तरीके हैं। एक आदेशात्मक तथा दूसरा है निवेदन करने का। आदेशात्मक वाणी का नकारात्मक प्रभाव दूसरे पर पड़ता है, जबकि निवेदन के शब्दों का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, उसकी प्रतिक्रिया भी बेहद अनुकूल होती है।
निवेदन करना मानव स्वाभाव की सुन्दर आदत कही जाती है। इससे मनुष्य के स्वाभाव की विनम्रता, शिष्टाचार, अनुशासन की परख हो जाती है।
इस संसार में सभी प्राणी कहीं न कहीं एक दूसरे से सम्बद्ध है। पग-पग पर प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति से सहयोग की आकांक्षा होती है। एक-दूसरे के सहयोग के बिना संसार में जीवन यापन सम्भव नहीं। अत: हमें प्रत्येक कार्य के लिए दूसरों की आवश्यकता अनिवार्य रूप से पड़ती है। इसके लिए जरूरतमंद व्यक्ति यदि दूसरे व्यक्ति से निवेदन करता है और वह व्यक्ति सहयोग करता है तो वह कार्य सहजता से पूरा हो जाता है।
निवेदन से किसी का भी दिल दुखी नहीं होता, वरन सहयोगी खुशी-खुशी सहयोग करता है, परन्तु इसके विपरीत किसी से जबरन अथवा उदड़तापूर्वक मांगा जाये तो दिल बहुत दुखी होता है। आपस में प्रेम के बजाय द्वन्द उत्पन्न होता है और कार्य की सफलता भी संदिग्ध हो जाती है।