नई दिल्ली। प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित अनेक औषधीय जड़ी-बूटियों में से एक विशेष महत्व रखने वाली जड़ी-बूटी है बाकुची। इसे ‘बावची’ या ‘बकुची’ के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा पद्धतियों में बाकुची का उपयोग त्वचा संबंधी रोगों के उपचार से लेकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों तक में किया जाता रहा है। रिसर्च गेट की अक्टूबर 2021 की एक शोध के मुताबिक, बाकुची विशेष रूप से त्वचा रोगों के इलाज में प्रसिद्ध है।
इसके बीजों में मौजूद सक्रिय यौगिक प्सोरालेन, सूरज की रोशनी के साथ मिलकर मेलानिन उत्पादन को उत्तेजित करता है, जिससे सफेद दाग (विटिलिगो), सोरायसिस, एक्जिमा, और खुजली जैसी समस्याओं में लाभ होता है। बाकुची का तेल त्वचा पर लगाने से त्वचा में निखार आता है और संक्रमण कम होते हैं। आयुर्वेद में बाकुची को कफ-वात शामक माना गया है और इसे दीपन, पाचन, रक्तशोधक, और वृष्य (प्रजनन क्षमता बढ़ाने वाली) औषधि के रूप में वर्णित किया गया है। यह जड़ी-बूटी यकृत विकारों, बवासीर, पेट के कीड़े, व्रण (घाव) और मूत्र संबंधी समस्याओं में भी लाभकारी मानी जाती है। बाकुची हड्डियों को मजबूत करने में मदद करती है। इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो हड्डियों और जोड़ों की सूजन कम करने में सहायक होते हैं।
गठिया और ऑस्टियोपोरोसिस जैसे रोगों में बाकुची उपयोगी साबित हो सकती है। हाल के कुछ शोधों से पता चला है कि बाकुची में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में सक्षम हैं। इसके अलावा, बाकुची ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में भी मदद कर सकती है, जिससे यह मधुमेह के मरीजों के लिए उपयोगी हो सकती है। हालांकि बाकुची प्राकृतिक औषधि है, लेकिन इसका अत्यधिक उपयोग या बिना परामर्श के सेवन शरीर पर दुष्प्रभाव डाल सकता है। विशेष रूप से इसकी त्वचा पर सीधी प्रतिक्रिया, फोटोसेंसिटिविटी (धूप में जलन) जैसी समस्याएं पैदा कर सकती हैं इसलिए इसका उपयोग किसी विशेषज्ञ आयुर्वेदाचार्य या डॉक्टर की सलाह से ही करें।