बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कुछ स्पष्ट बातें कही थीं जिसकी दुनिया भर में चर्चा हो रही थी। उनका कहना था कि अमेरिका ने बांग्लादेश में कुछ देश विरोधी ताकतों को उनके पद से हटाया है, लेकिन उनके अनुसार अमेरिका बांग्लादेश से सेंट मार्टिन नामक टापू लीज पर मांग रहा था और वह ऐसा करने के लिए तैयार नहीं थीं। इसलिए अमेरिका ने सारी साजिश रची। शेख हसीना के इस रहस्योद्घाटन की देश-विदेश में खूब चर्चा हुई। इसके साथ इस पूर्व प्रधानमंत्री ने एक दूसरा रहस्योद्घाटन भी किया। उसके अनुसार अमेरिका चिटगांव, भारत के कुकी बहुल इलाकों और म्यांमार के कुकी बहुल काचिन प्रदेश को मिला कर पूर्वोत्तर भारत में एक ईसाई देश का गठन करने का प्रयास कर रहा है। आश्चर्य है कि विदेशी मीडिया ने शेख हसीना के इस पर्दाफाश की अवहेलना की, लेकिन उससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि भारत का मीडिया भी इस विषय पर एकदम से खामोशी का शिकार हो गया। पूर्वोत्तर भारत के कुकी बहुल इलाके कौनसे हैं? उनमें सबसे पहले तो मणिपुर का विशाल पर्वतीय क्षेत्र है जहां कुकी समुदाय का बाहुल्य है। मणिपुर का पड़ोसी प्रदेश मिजोरम है।
मिजोरम के निवासी ‘जो भी कुकी समाज का हिस्सा ही माने जाते हैं। इसका अर्थ हुआ कि मिजोरम और मणिपुर में मैतेयी बहुल इम्फाल घाटी को छोड़कर शेष सारा मणिपुर कुकी समुदाय का इलाका माना जाता है। मिजोरम और मणिपुर के पड़ोस में म्यांमार लगता है। म्यांमार का काचिन प्रदेश कुकी बहुल प्रदेश है। इस काचिन प्रदेश को म्यांमार से अलग करने के लिए विद्रोही समय समय पर आघात करते रहते हैं। मणिपुर में कुकी विद्रोह से पहले म्यांमार का काचिन प्रदेश विद्रोहियों के कब्जे में आ गया था। उसके बाद ही मणिपुर में गड़बड़ शुरू हुई।
म्यांमार में पहाड़ी क्षेत्र में पिछले कई सालों से अलगाववादी आंदोलन चल रहा है। पहाड़ी क्षेत्र में अंग्रेजों के शासन काल में ही विदेशी ईसाई मिशनरियां सक्रिय हो गई थीं। अब तक उन्होंने पूरे पहाड़ी क्षेत्र की जनजातियों को मतांतरित करके ईसाई बना लिया है। इन मतान्तरित क्षेत्रों में चिन कुकी बहुल चिन प्रदेश भी शामिल हैं। वहां से कुकी निरन्तर मणिपुर में आते जाते रहते हैं। पूर्व की कांग्रेस सरकार ने सत्ता गंवाने से ठीक पहले कुकी बहुल क्षेत्र की पहचान को पुख्ता व स्पष्ट स्थापित करने के लिए पूरे मणिपुर का नक्शा ही बदल दिया था। उसने अनेक जिलों को इस प्रकार विभाजित किया ताकि कुकी बहुल जिलों का निर्माण किया जा सके। इसी प्रकार बंग्लादेश के चिटागांव से कुकी विद्रोही आघात प्रत्याघात करते रहते हैं।
एक दूसरा तथ्य भी ध्यान में रखना होगा। मिजोरम, मणिपुर, चिटागांव और म्यांमार के चिन प्रदेश के कुकी शत-प्रतिशत अपनी विरासत छोडकऱ ईसाई मत में जा चुके हैं। मणिपुर-मिजोरम-चिटगांव-चिन क्षेत्र के कुकी समाज को कुकी-जो-चिन के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल अंग्रेज भारत से जाने के पहले 1947 में ही भारत को घेरने की योजना पर काम कर रहे थे। पूर्वोत्तर भारत में एक ईसाई देश बनाने की योजना थी जिसे कूपलैंड योजना कहा जाता था और पश्चिमोत्तर भारत में एक मुसलमान देश बनाने की योजना थी जिसे जिन्ना योजना कहा जाता था। जिन्ना योजना तो पश्चिमोत्तर भारत की राजनीति का हिस्सा बन गई, लेकिन कूपलैंड योजना में अभी ब्रिटिश साम्राज्यवादी रंग भर ही रहे थे कि द्वितीय विश्व युद्ध का अन्त हो गया और अंग्रेजों को इस योजना को अधूरी छोड़ कर जाना पड़ा। असम के उस समय के राज्यपाल राबर्ट नायल राईड्स ने 1941 में ही शिलांग की एक गोपनीय बैठक में इस योजना का ख़ुलासा करते हुए कहा था कि ‘बर्मा के काचिन क्षेत्र और भारत के पूर्वोत्तरीय पहाड़ी क्षेत्र को अलग करके ऐसा नया देश बनाने की योजना है जिस पर इंग्लैंड का शासन हो। अंग्रेज जानते थे कि जिन्ना योजना से पैदा होने वाले देश पाकिस्तान पर वे प्रत्यक्ष शासन नहीं कर पाएंगे। वहां तो रणनीतिक साझेदारी ही हो सकती है। बर्मा और भारत के एक हिस्से को काट कर बनाए गए नए ईसाई देश को वे अपना उपनिवेश बना सकेंगे। भारत की पूर्वोत्तर सरहद पर नया देश बनाने की इच्छा पूरी होने से पहले ही अंग्रेजों को यहां से जाना पड़ा।
एक दशक पहले कांग्रेस सरकार ने मणिपुर में कुकी क्षेत्रों को चिन्हित करते हुए नए जिले क्या कुकी क्षेत्रों को मणिपुर से अलग करने के लिए ही गठित किए थे? इसमें तो कोई शक नहीं कि बर्मा के काचिन क्षेत्र में कुकी समुदाय के लोगों को ईसाई बनाने के काम में लगी मिशनरियों को अमेरिका से धन ही नहीं, अन्य प्रकार की सहायता भी मिल रही है। एक प्रश्न जरूर पूछा जा सकता है कि अमेरिका को इस नए ईसाई देश से क्या फायदा होगा? जिस प्रकार अन्तरराष्ट्रीय राजनीति में बदलाव होता रहता है, उसी परिप्रेक्ष्य में विभिन्न देशों के स्वार्थ और रिश्ते बदलते रहते हैं।
आज अमेरिका, चीन और भारत दोनों पर नजर रखना चाहता है। चीन भी आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका को टक्कर देने की दिशा में बढऩे का प्रयास कर रहा है। भारत का मामला उससे भी पेचीदा है। यह ठीक है कि अमेरिका और भारत की किसी स्तर पर भी समानता नहीं है, आज अमेरिका समेत पूरे यूरोप में जो ‘सभ्यताओं का संघर्ष चला हुआ है उसमें भविष्य में भारत का पलड़ा भारी हो सकता है। इसलिए अमेरिका को राजनीतिक रूप से अस्थिर भारत अनुकूल लगता है।
-राकेश दुबे