Sunday, April 28, 2024

आज का शुभ दिन दिखाने के लिए मोदी के अलावा इनका भी नाम इतिहास याद रखेगा !

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इस वक्त पूरा देश राममय है। हर जगह सिर्फ रामभक्ति में डूबे लोग दिख रहे हैं। शुक्रवार को अयोध्या के भव्य मंदिर में विराजमान होने वाले रामलला की छवि पहली बार रामभक्तों ने देखी। उस मूर्ति के दर्शन पहली बार हुए, इसीलिए करोड़ों रामभक्त भाव विभोर हैं। अयोध्या में तो उत्सव जैसा माहौल है। देशभर से पहुंचे रामभक्त तो जैसे सुधबुध खो बैठे हैं। हर तरफ सिर्फ राम नाम का शोर है। कहीं भजन चल रहे हैं, कोई डमरू बजा रहा है, कोई नाच रहा है, कोई खुशी में रो रहा है। सबकी ज़ुबान पर एक ही बात है, रामलला आ गए, जय श्रीराम।

सिर्फ अपने देश के नहीं, दुनिया के तमाम देशों से रामभक्त अयोध्या पहुंचे हैं। जो नहीं पहुंच पाए, उन्होंने रामलला के लिए तमाम तरह के उपहार भेजे हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा आज हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ धर्माचार्यों के बताए यम नियम का कठोरता से पालन कर रहे हैं। मोदी इस वक्त पूर्ण व्रत पर हैं, दिन में सिर्फ एक बार फलाहार कर रहे हैं और नारियल का पानी पी रहे हैं। शनिवार को मोदी तमिलनाडु के तिरुचिरपल्ली में श्री रंगनाथस्वामी मंदिर गए, पूजा की और कम्बन रामायण के श्लोक सुने। मंदिर के पुजारियों ने रामलला को पहनाने के लिए बेशकीमती वस्त्र मोदी को भेंट किया।

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गौरतलब है कि विष्णु के अवतार के रूप में पूजनीय राम, हिंदू धर्म में एक देवता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। प्राचीन भारतीय महाकाव्य, रामायण के अनुसार, राम का जन्मस्थान अयोध्या माना जाता है, जिससे इस शहर के प्रति भारत के लोगों में आध्यात्मिक महत्व पैदा होता है। हालाँकि, 16वीं शताब्दी में, पूरे उत्तर भारत में बाबर के मंदिरों पर हमलों की श्रृंखला के दौरान अयोध्या के भव्य मंदिर को विनाश का सामना करना पड़ा। आज 500 वर्षों के संघर्ष के बाद यह दिन देखने को मिल रहा है ।

निस्संदेह, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी व योगी ने इस देश और धर्म के लिए जो किया है वह अकल्पनीय है। वह हमारे महान राष्ट्र और उससे भी महान धर्म के इतिहास पर एक कालजयी हस्ताक्षर की तरह हैं। मोदीजी और योगीजी हमारे इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में अंकित हो गये हैं। पर हमें इस अवसर पर 500 वर्षों और खास कर उन लोगों का जिक्र करना जरुरी है कि जिन्होंने 1980 से इस आन्दोलन को तेज किया जिसके कारण हम आज ये दिन देख रहे है । हजारों साधुगण, लाखों कारसेवक, जिसमें से हजारो ने तत्कालीन सरकार की अमानवीयता के कारण गोली खाई व वे नेता जिन्होंने अपना सब कुछ त्याग कर अपना पूरा समय इस आन्दोलन को दे दिया।

गौरतलब है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा 1980 के दशक से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के लिए एक प्रमुख एजेंडा रहा है। विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और अन्य संबद्ध समूह जैसे संगठन राम जन्मभूमि आंदोलन को एक शक्तिशाली सामाजिक-राजनीतिक अभियान में आगे बढ़ाने के लिए अपनी संगठनात्मक ताकत का उपयोग करते हुए एकजुट हुए।निम्नलिखित चर्चा उन दस प्रभावशाली हस्तियों द्वारा निभाई गई भूमिकाओं पर चर्चा करेंगे जिन्होंने अयोध्या राम जन्मभूमि आंदोलन को आगे बढ़ाया और इसका नेतृत्व किया। पूरे देश में हर जगह इसकी चर्चा है, लेकिन जिन लोगों ने राम जन्मभूमि के आंदोलन में हिस्सा लिया था, वे आज भी जब जुल्म और अपमान की बातें बताते हैं तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं।

लालकृष्ण आडवाणी
लाल कृष्ण आडवानी, एक अनुभवी भारतीय जनता पार्टी के नेता , अयोध्या राम जन्मभूमि अभियान में अपनी भागीदारी के माध्यम से हिंदुत्व का प्रमुख चेहरा बन गए। 1990 में, उन्होंने राम मंदिर के निर्माण के लिए व्यापक समर्थन जुटाने के लिए एक परिवर्तित टोयोटा बस को रथ के रूप में इस्तेमाल करते हुए, गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल तक एक राष्ट्रव्यापी रोड शो का आयोजन किया था । हालाँकि, उनकी यात्रा में तब बाधा उत्पन्न हुई जब बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अयोध्या पहुँचने से पहले समस्तीपुर जिले में उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया। 1992 में जब बाबरी मस्जिद स्थल को कारसेवकों द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था, जिसके कारण आपराधिक मुकदमा चल रहा था, तब आडवाणी भी बाबरी मस्जिद स्थल के पास मौजूद थे जिसके कारण उनका नाम एफ आर आई में आने से उन्होंने अपने उपप्रधान मंत्री पद का परित्याग कर दिया । ये बात सब लोग जानते हैं कि इस पूरे संघर्ष में नरेंद्र मोदी का भी काफी सक्रिय रोल था। राम जन्मभूमि आंदोलन को लीड करने वाले लालकृष्ण आडवाणी के रथ के वो ही सारथी थे। जब बिहार की पुलिस आडवाणी जी को गिरफ्तार करने पहुंची थी तो मोदी सारी व्यवस्था देख रहे थे। मोदी ने तभी प्रण किया था कि वो अयोध्या में राम मंदिर बनवाकर रहेंगे, इसीलिए आज भी राम मंदिर के आंदोलन को याद करके वो भावुक हो जाते हैं।

प्रमोद महाजन
भाजपा के भीतर अपनी रणनीतिक कौशल के लिए जाने जाने वाले प्रमोद महाजन ने एक योजनाकार के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1990 में, भाजपा महासचिव के रूप में, उन्होंने आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक पदयात्रा की मूल योजना में बदलाव का सुझाव दिया और इसके बजाय रथयात्रा का प्रस्ताव रखा। महाजन ने 25 सितंबर, भाजपा विचारक दीनदयाल उपाध्याय की जयंती और 2 अक्टूबर, महात्मा गांधी जयंती जैसी महत्वपूर्ण तारीखों पर यात्रा शुरू करने की सिफारिश की। आडवाणी ने 10,000 किलोमीटर लंबी यात्रा के लिए 25 सितंबर का दिन चुना जिसे महाजन ने उभरते संगठनात्मक नेता नरेंद्र मोदी की सहायता से सावधानीपूर्वक योजना बनाई और क्रियान्वित किया।

अशोक सिंघल
विश्व हिंदू परिषद के एक अथक नेता अशोक सिंघल ने राम जन्मभूमि अभियान के लिए सार्वजनिक समर्थन बनाने के लिए अपने प्रयास समर्पित किए। व्यापक रूप से राम मंदिर आंदोलन के मुख्य वास्तुकार के रूप में माने जाने वाले सिंघल ने 2011 तक वीएचपी प्रमुख के रूप में कार्य किया, स्वास्थ्य कारणों से सेवानिवृत्त हो गए और नवंबर 2015 में उनका निधन हो गया।

मुरली मनोहर जोशी
मुरली मनोहर जोशी, जिन्हें अक्सर 1980 और 1990 के दशक के दौरान भाजपा के ‘प्रोफेसर के रूप में जाना जाता है, 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दौरान आडवाणी के साथ मौजूद थे। वह भी वर्तमान में मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं। एक उल्लेखनीय तस्वीर में बाबरी मस्जिद के गिरने के बाद जोशी को उमा भारती को गले लगाते हुए दिखाया गया जिसने राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया।

उमा भारती
भाजपा की एक प्रमुख हस्ती और नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री रहीं उमा भारती राम मंदिर आंदोलन की सबसे प्रभावशाली महिला नेता के रूप में उभरीं। लिब्रहान आयोग ने उन पर बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान भीड़ को उकसाने का आरोप लगाया था। भाजपा नेताओं द्वारा राम मंदिर भूमि पूजन को पार्टी का एक विशेष कार्यक्रम बताने की कोशिशों के बावजूद भारती ने इस बात पर जोर दिया कि भगवान राम पार्टी की सीमाओं से परे सभी के हैं।

साध्वी ऋतंभरा
राम मंदिर आंदोलन के बाबरी मस्जिद-पूर्व चरण में, साध्वी ऋतंभरा एक भावुक हिंदुत्व नेता के रूप में उभरीं, जो अयोध्या राम जन्मभूमि अभियान की महिला चेहरे के रूप में पहचान के मामले में उमा भारती के बाद दूसरे स्थान पर थीं। उनके उग्र भाषणों के ऑडियो कैसेटों का व्यापक प्रसार हुआ। ये उनकी हिम्मत थी या भगवान का वरदान, वे एक – एक दिन में 22 से 25 सभाओं द्वारा हिन्दू समाज को जागृत करती थी । हाल में एक टी वी कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए साध्वी ऋतंभरा ने बताया था कि कैसे उन्हें प्रताडि़त किया जाता था,पूरे हिंदू समाज का मज़ाक उड़ाया जाता था, कैसे पुलिस हमेशा उनके पीछे पड़ी रहती थी और उन्हें भेष बदल-बदलकर जन जागरण की सभाओं में जाना पड़ता था। साध्वी ऋतंभरा उन कारसेवकों को याद करके रो पड़ीं जिन पर मुलायम सिंह यादव की पुलिस ने गोलियां चलवाई, जिनके खून से सरयू का पानी लाल हो गया था।

कल्याण सिंह
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में कल्याण सिंह ने अयोध्या अभियान के क्षेत्रीय नेता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह 6 दिसंबर 1992 को मुख्य मंत्री पद पर थे जब बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था। सिंह ने यूपी सरकार को निर्देश दिया कि मध्ययुगीन ढांचे की ओर बढ़ रहे कारसेवकों पर बल प्रयोग न किया जाए। बाद में उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था।

विनय कटियार
बजरंग दल के एक मुखर नेता विनय कटियार ने 1992 के बाद अपने राजनीतिक कद में काफी वृद्धि देखी। राम मंदिर अभियान को बढ़ावा देने के लिए 1984 में गठित बजरंग दल के पहले अध्यक्ष कटियार थे। बाद में वह भाजपा के महासचिव बने और राज्यसभा और लोकसभा दोनों में सदस्य के रूप में तीन बार फैजाबाद, अब अयोध्या का प्रतिनिधित्व किया।

प्रवीण तोगडिय़ा
अपने ओजस्वी भाषणों के लिए जाने जाने वाले प्रवीण तोगडिय़ा एक और गतिशील नेता के रूप में उभरे । उन्होंने आक्रामक बयानबाजी के जरिए अपनी हिंदुत्ववादी छवि बनाई और अशोक सिंघल के बाद वीएचपी का नेतृत्व संभाला। भाजपा में आडवाणी का प्रभाव कम होने के साथ ही तोगडिय़ा ने खुद को संघ परिवार में किनारे पर पाया।

विष्णु हरि डालमिया
हिंदुत्व की राजनीति से गहराई से जुड़े उद्योगपति विष्णु हरि डालमिया ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की वकालत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विहिप के भीतर विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए, डालमिया बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सह-अभियुक्तों में से एक थे। जनवरी 2019 में 91 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
इन व्यक्तित्वों ने सामूहिक रूप से अयोध्या विवाद की कथा को आकार दिया जिससे भारतीय इतिहास और राजनीति पर एक अमिट छाप पड़ी।
-अशोक भाटिया

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