सहारनपुर। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने उत्तराखंड विधानसभा में पेश समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक को भेदभावपूर्ण करार देते हुए अपने बयान में कहा कि अनुसूचित जनजाति को इस विधेयक के दायरे से बाहर रखा जा सकता है, तो फिर मुस्लिम समुदाय को छूट क्यों नहीं मिल सकती।
![](https://royalbulletin.in/wp-content/uploads/2024/05/IMG_20240504_175237.jpg)
मदनी ने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा में पेश किये गए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) में अनुसूचित जनजातियों को संविधान के अनुच्छेद जो 366ए अध्याय 25ए उपधारा 342 के तहत नए कानून से छूट दी गई है और यह तर्क दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई है।
मौलाना मदनी ने कहा कि यदि संविधान की एक धारा के तहत अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से अलग रखा जा सकता है तो हमें संविधान की धारा 25 और 26 के तहत धार्मिक आज़ादी क्यों नहीं दी जा सकती। संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों को मान्यता देकर धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है।
मदनी ने दावा किया कि समान नागरिक संहिता मौलिक अधिकारों को नकारती है। यदि यह समान नागरिक संहिता है, तो फिर नागरिकों के बीच यह भेदभाव क्यों? हम किसी ऐसे कानून को स्वीकार नहीं करेंगे जो शरीयत के खिलाफ हो, सच तो यह है कि किसी भी धर्म को मानने वाला अपने धार्मिक कार्यों में किसी प्रकार का अनुचित हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर सकता। देश संविधान से चल रहा है और यहां पहले से सारे कानून मौजूद हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि सांप्रदायिक ताकतें भावुक एवं धार्मिक मुद्दे खड़े करके देश के अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों को निरंतर भय और अराजकता में रखना चाहती हैं। लेकिन, मुसलमानों को किसी भी तरह के भय और अराजकता में नहीं रहना चाहिए। देश में जब तक न्याय-प्रिय लोग बाक़ी हैं, उनको साथ लेकर जमीयत उलमा-ए-हिंद उन ताक़तों के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखेगी, जो देश की एकता और अखण्डता के लिए ना केवल एक बड़ा खतरा हैं बल्कि समाज को भेदभाव के आधार पर बांटने वाली भी हैं।
उन्होंने कहा कि हमारी कानूनी टीम विधेयक के कानूनी पहलुओं की समीक्षा करेगी, जिसके बाद कानूनी कदम पर फैसला लिया जाएगा।