पटना। बिहार शिक्षक नियुक्ति नियमावली में संशोधन की चहुंओर निंदा हो रही है। भाजपा और शिक्षक संघ सहित शिक्षक-अभ्यर्थी तो नाराज हैं ही, सत्ताधारी महागठबंधन में भी फूट दिखने लगी है।
दरअसल, बिहार मंत्रिमंडल की मंगलवार को हुई बैठक में शिक्षक नियुक्ति नियमावली संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। इसके तहत बिहार में विद्यालय शिक्षक के पद पर नियुक्ति के लिए अब बिहार के स्थायी निवासी होने की अहर्ता अनिवार्य नहीं है। नियोजित शिक्षक संघ और अभ्यर्थियों का कहना है कि स्थानीयता को समाप्त करना स्थानीय छात्रों के साथ भद्दा मजाक है। उन्होंने कहा कि अब आंदोलन और तेज किया जाएगा।
दूसरी तरफ बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने शिक्षक भर्ती में बिहार के स्थायी निवासी की शर्त को वापस लेने संबंधी तुगलकी फरमान को बिहार की प्रतिभाओं का अपमान बताया और उसे तत्काल वापस लेने की मांग की है।
सुशील कुमार मोदी ने कहा कि शिक्षा मंत्री का यह बयान हास्यास्पद है कि अंग्रेजी, गणित, फिजिक्स में योग्य शिक्षक नहीं मिलने के कारण बिहार के बाहर के अभ्यर्थियों को बुलाया जा रहा है। बिहार के लड़के अखिल भारतीय सेवाओं, आईआईटी आदि में परचम फहरा रहे हैं और मंत्री कह रहे हैं कि इन विषयों में लड़के नहीं मिल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि 15 जून के विज्ञापन में बिहार डोमिसाइल की शर्त अनिवार्य रखी गई थी। फिर अचानक उसे क्यों हटा दिया गया? क्या कक्षा 1-5 के लिए भी बिहारी प्रतिभा पढ़ाने योग्य नहीं है कि बाहर के लोगों को बुलाया जाए। शिक्षक नियुक्ति में अराजकता की स्थिति पैदा हो गई है। चार लाख नियोजित शिक्षकों एवं एक लाख से ज्यादा टीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को पुनः परीक्षा में बैठने की बाध्यता उनके साथ विश्वासघात है। अब एक ही विद्यालय में तीन प्रकार के शिक्षक हो जाएंगे।
सुशील कुमार मोदी ने कहा कि अभी तक आठ बार विज्ञापन में संशोधन किया जा चुका है। नई नियुक्ति के कारण 11,000 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इस कारण सरकार मुकदमे में फंसाकर परीक्षा टालने का बहाना खोज रही है।
इधर, सरकार को समर्थन दे रही भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि शिक्षक बहाली की चल रही प्रक्रिया के बीच अचानक डोमिसाइल नीति को हटा देना बेहद अप्रत्याशित और अनुचित है। इससे बिहार के छात्रों का हक मारा जाएगा। पहले से ही आक्रोशित शिक्षक संगठनों व अभ्यर्थियों का आक्रोश और भड़केगा। उन्होंने कहा कि उम्मीद थी कि सरकार शिक्षक संगठनों व अभ्यर्थियों के पक्ष में कोई सकारात्मक फैसला करेगी। लेकिन, उलटे उसने डोमिसाइल नीति को खत्म कर उन्हें और निराश किया है।